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दिकम्मं ॥असोतनुंजदीदिसि ईनं ॥ परिकप्पिकगणूणं ॥ वसिकिन्चाणिरयमुववलो ॥५॥ इति इ. नकी नाषा अथ बौइमतकी उत्पति लिखते है. श्री पार्श्वनाथके तीर्थमें सरयू नदीके कांठे ऊपर पलासनामे नगरमें रहा हुआ, पिहिताश्रव नामा मुनिका शिष्य बुद्धकीर्ति जिसका नाम था, ए. कदा समय सरयू नदीमें बहुत पानीका पूर चढि आया तिस नदीके प्रयाहमें अनेक मरे हुए मछ वहते हुए कांठे ऊपर आ लगे, तिनको देखके तिस बुकीर्तिने अपने मनमें ऐसा निश्चय क. राकि स्वतः अपने आप जो जीव मर जावे तिसके मांस खानेमे क्या पापहै, तब तिसने अंगोकार करी हुइ प्रवजावत रूप गेम दीनी, अर्थात् पूर्व अंगीकार करे हुए धर्मसें भ्रष्ट होके मांस नकण करा, और लोकोंके आगे ऐसा अनुमान कथन कराकी मांसमें जोव नहो है, इस वास्ते इसके खाने में पाप नही लगताहै. फल, दुध, दहिं तरें तथा मदोरा पोनेनो पाप नहीहै. ढीला व्य हानेसे जलवत् . इस तरेको प्ररूपणा करके
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