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अध्ययन और उत्तीस ३६ विना पूज्यां प्रश्नोके नत्तर कथन करके पीने ५५, पचपन शुन्न विपाक फल ना अध्ययनोंमेंसें एक प्रधान नामे अध्ययन कथन करते हुए निर्वाण प्राप्त हुए थे. यह कथन संदेह विषौषधी नामें ताम पत्रोपर लिखी हुइ पुरानी कल्पसूत्रकी टीकामे है. येह सर्वाध्ययन श्री सुधर्मस्वामीजीने सूत्ररूप गूंथे होवेंगे के नही, ऐसा लेख मेरे देखनेमें किसी शास्त्रमें नही आया है.
प्र. ए-जैनमतमे यह जो रूढिसे कितनेक लोक कहते है कि श्री उत्तराध्ययनजीके बत्तीस अध्ययन दिवालीकी रात्रिमें कथन करके ३७ सैंतीसमा अध्ययन कथन करते हुएमोक्षगये, यह कथन सत्य है, वा नही?
न.-यह कथन सत्य नही, क्योंकि कल्प सूत्रकी मूल टीकासे विरुद्धहै, और श्रीनबाहुस्वामीने नुत्तराध्ययनकी नियुक्तिमें ऐसा कथन कराहै कि उत्तराध्ययनका दूसरा परीषहाध्ययनतो कर्मप्रवाद पूर्वके १७ सत्तरमें पाहुमसे नुसार क.
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