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पूर्वोक्त अनुमान सत्य नही सिद्ध होता है. जेकर कदाचित् बौध मतके मूल पिडग ग्रंथो में ऐसा लेख लिखा हुआ होवेकि, बुधके कितनेक शिष्य बुधकों नाकबूल करके बुध के प्रतिपक्षी निर्ग्रथोके सिरदार न्यात पुत्रके शिष्य बने; तिनोंने बुधके समान नवीन कल्पना करके जैनमत चलाया है. जेकर ऐसा लेख होवे तबतो हमकोबी जैनमतकी सत्यता विषे संशय उत्पन्न होवे, तबतो हमनी प्रोफेसर ए. वेबर के अनुमानकी तर्फ ध्यान देवें; परंतु ऐसा लेख जुटा बुधके पुस्तकोंमे नही है क्योंकि बुधके समयमे श्रीपार्श्वनाथजीके हजारों साधु विद्यमानथे तिनके होते हुए ऐसा पुर्वोक्त लेख कैसें लिखा जावे, बलके जैन पुस्तकोंमेंतो बुधकी बाबत बहुत लेख है श्रीयाचा रंग की टीका में ऐसा लेखहै. मौलिस्वातिपुत्राभ्यां शौौदनं ध्वजीकृत्य प्रकाशितः अस्यार्थ ॥ माङ्गलिपुत्र अर्थात् मौलायन और स्वातिपुत्र अर्थात् सारीपुत्र दोनोंने श्रुद्धोदनके पुत्रकों ध्वजीकृत्य अर्थात् ध्वजाकी तरे सर्व मताध्यक्कोंसें अधिक नंचा सर्वोत्तम रूप
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