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धुयोंकों एकठे करो और स्याही ताम पत्र बहुत संचित करो; लिखारियोंको बुलान; और साधारण व्य श्रावकोंसें एकता करावो; तब श्री देवाईगणि कमाश्रमणने पूर्वोक्त सर्व काम वजनी नगरीमें करा, तब पांचसौ आचार्य और वृक्ष गीताोंने सर्वांगोपांगादिकांके आलापक साधु ले. खकोंने लिखे, खरमा रुपसें; पीछे देवगिणि क्षमाश्रमणजीने सर्व अंगोपांगोके आलापक जो. मके पुस्तक रूप करे. परस्पर सूत्रांकी भुलावना जैसे नगवतीमे जहा पनवणाए इत्यादि अति देशकरे सर्व शास्त्र शुद्ध करके लिखवाए. देवताकी सानिध्यतासें एक वर्षमें एक कोटी पुस्तक १००00000 लिखे. प्राचारंगका महाप्रज्ञा अध्ययन किसी कारणसें न लिखा, परं देवगिणि कमाश्रमणजी प्रमुख कोश्नी आचार्यने अपनी मन कल्पनासें कुगनी नही लिखाहै. इस वास्ते जैन शास्त्र सर्व सत्य कर मानने चाहिये ॥ जो कोश को कथन समझ में नही आताहै, सो यथार्थ गुरु गम्यके अन्नावसें; परं गणधरोके कथनमें किंचित्
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