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वप्रसादजीने अपने बनाए इतिहास तिमर नासकमें लिखा है. बुलरसाहिबने १५०००० मेढ लाख जैन मतके पुस्तकोंका पता लगाया है; और यहनो मनमें कुविकल्प न करनाके यह शास्त्र गराघरोंके कथन करे हुए है, इस वास्ते सच्चे है, अन्य सच्चे नही, क्योंके सुधर्मस्वामीने जेसे अंग रचेथे वैसेतो नही रहेहै. संप्रति कालके अंगादि सर्व शास्त्र स्कंधिलादि आचार्योने वां. चना रूप सिद्धांत बांधेहै, इस वास्ते पूर्वोक्त आ. ग्रह न करना, सर्व प्रमाणिक आचायोंके रचे प्र. करण सत्यकरके मानने, यही कल्याणका हेतुहै.
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