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थे, इस वास्ते नही लिखा वा अन्य कोइ कारएप था.
न.-लिखनेतो जानते थे, परं सर्व ज्ञान लिखनेकी शक्ति किसोनी पुरुषमें नही थी, क्योकें नगवंतने जितना ज्ञानमें देखा था तिसके अनंतमें नागका स्वरूप वचनद्वारा कहा था. जितना कथन करा था तिसके अनंतमें नाग प्रमाण गणधरोने बादशांग सूत्र में ग्रंथन करा, जेकर कोइ १२ बारमें अंग दृष्टिबादका तीसरा पूर्व नामा एक अध्ययन लिखे तो १६३०३ सो. लांहजार तीन सौ त्रिराशी हाथीयों जितने स्पा हीके ढेर लिखने में लगें, तो फेर संपूर्ण द्वादशांग लिखनेकी किसमे शक्ति हो सक्तीहै, और जब तीर्थंकर गणधरादि चौदह पूर्वधारी विद्यमान तिनके आगे लिखनेका कुबनी प्रयोजन नहीथा,
और देशमात्र ज्ञान किसि साधु, श्रावकने प्रकरण रूप लिख लीया होवे, अपने पठन करने वास्ते, तो निषेध नही.
प्र. ७३–पूर्वोक्त जैनमतके सर्व पुस्तक
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