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वस्तुका ओर बतीस अनंत कायका त्याग करे. और १५ बुरे वाणिज व्यापार करनेका त्याग करे. बिना प्रयोजन पाप न करे. सामायिक करे; देशावकाशिक करे; पोषध करे; दान देवे; त्रिका ल देव पूजन करे.
प्र. ६७-साधु श्रावकका धर्म किसवास्ते मनुष्यों को करना चाहिये.
न.-जन्म मरणादि संसार भ्रमण रूप सुखसे बूटने वास्ते साधु और श्रावकका पूर्वोक्त धर्म करना चाहिये.
प्र. ६ए-श्रीनगवंत महावीरजीने जो धर्म कथन कराया. सो धर्म श्रीमहावीरजीने अपने हाथोंसे किसी पुस्तकमें लिखा था वा नही.
न.-नही लिखाथा.
प्र. ७०–श्रीमहावीर नगवंतका कथन करा हुआ सर्व उपदेश नगवंतकी रूबरु किसी दूसरे पुरुषने लिखाथा.
न.-दूसरे किसी पुरुषने सर्व नही लिखाथा. प्र. ७१-क्या लिखने लोक नही जानते
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