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इस वास्ते असातावेदनीय कर्म निकाचितनें श्र पने फल रूप नृपसर्गसें कर्म जोग्य कराके दूर दोगये, इस वास्ते बहुत उपसर्ग हुए.
प्र. ४ - श्रीमहावीरजीने परीषहे किस वास्ते सहन करे और तप किस वास्ते करा.
न. - जेकर जगवंत परोषहे न सहन करते और तप न करते तो पूर्वोपार्जित पाप, कर्म, दय न होते, तबतो केवलज्ञान और निर्वाण पद ये दोनो न प्राप्त होते इस वास्ते परीषहे नृपसर्ग सहन करे, और तपनी करा.
प्र. ५० - श्रीमहावीरजीने बद्मस्वावस्था में तप कितना करा और नोजन कितने दिन कराया, न. - इसका स्वरूप नोचले यंत्र से समऊ लेनां.
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