________________
ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
-
ज्ञान सरोबर विषै पैठ सुधा अमृतनै पीवै है । वा सुधा अमृत विषै केलि करै है वा ज्ञान समुद्रमें डूब गया है अथवा संसारका भय थकी डरपि आभ्यंतर विर्षे अमूर्तीक पुरुषाकार ज्ञानमय मूस्त ऐसा चैतन्य देवके शरणकुं प्राप्त हुवा है या विचार है भाई म्हानै तो एक चैतन्य धातुमय पुरुष ज्ञायक महिमानै धरचा ऐसा परमदेव सोही शरण है। अन्य शरण नाहीं ऐसाम्हाकै निःसन्देह अवगाढ़ है। बहुरि सुधामृत करि चैतन्य देवका कर्म कलंकनै धोय लेपन कहिये प्रक्षालण करिऐ है पाछै मगन होय ताकौ सन्मुख ज्ञान धाराको क्षेपै है । पाछै निन स्वभाव सोही भया चन्दन ताकी अर्चा कहिये ताकौ पूजे हैं । अरु अनंत गुण सोई भया अक्षत ताको तिन विर्यै क्षेपै हैं । पाछै सुमन कहिये भला मन सोई भया आठ पांखुड़ी संयुक्त पदम--पुष्प ताकौ वा विषै बहुड़े हैं.। अरु ध्यान सोही भया नैवेद्य ता विषै सन्मुष करै है अरु ज्ञान सोही भया दीपताकों तावि. प्रकाशित करै हैं । मानौं ज्ञान दीपकर चैतन्य देवका स्वरूप अबलोकन करै है । पाछै ध्यानरूपी अगनि विषै कर्म सो ही भया धूप ताकौ उदार मन करि शीघ्रपने आछै २ क्षेपे हैं, पाछै निजानंद सो ही भया फल ताकू भलीभांत ताविषै प्राप्त करै हैं ऐसे अष्ट द्रव्य करि पूजन करै है । मोक्ष सुखकी प्राप्तिके अर्थ । बहुरि कैसे हैं शुद्धोपयोगी मुनि आप तौ शुद्ध स्वरूप विषै लग गया है । तहां मारगमें कोई भोला जनावर ढूंठ जान वाके शरीर सों खान खुजावै है । तोहू मुन्याका उपयोग ध्यानसौ चलें नाहीं है । ऐसा निज स्वभावसौ रत हुवा है । बहुरि हस्ती, सिंघ, शूकर, व्याघ्र, मृग, गाय इत्यादि वैरभाव छोड़ सन्मुख खड़ा