Book Title: Dwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 8
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Yashovijay of Jayaghoshsuri
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 19
________________ ...... 18 • विषयमाहिश. द्वात्रिंशिका प्रदीपनिर्वाणोपमशान्तिनिराकरणम् ............ २११० / संघटनयमान्य भुस्तिने मोगलामे. ........२१३२ बौद्धानां जीवन्मुक्तिस्वीकारः ....................... २१११ | शरावादेः सावृतप्रकाशहेतुता .................... २१३३ પર્યાયનય દેશના પ્રદર્શન ................... २१११ | अनावृतज्ञानाद्याविर्भावविमर्शः ......................... २१३४ बौद्धानां परिशुद्धपर्यायनयान्तःपातित्वम् .......... २११२ | व्यqडा२नयमान्य भुक्तिनु नि३५५! ........... २१३४ स्वातन्त्र्यस्५३५ भोक्षनी समीक्षा ............. २११२ | द्वेषयोनिप्रयत्नोपवर्णनम् .... ............... २१३५ स्वातन्त्र्यवैविध्यम ..... ....... २११३ भनिराम परमपुरुषार्थत्वनी संगति ...... २१३५ चार्वाकदर्शनेऽपि स्वातन्त्र्यं मुक्तिः ........... ...... २११४ | दुःखद्वेषे तद्धेतुद्वेषध्रौव्यम् ............... २१३६ सांध्यभान्य भाउतनसभाक्ष ................ २११४ | एकोपयोगस्यापि क्रमानुवधसम्भवः .................. २१३७ उपचरित साध्यताऽपाकरणम् ......................... २११५ | क्रमिकाऽक्रमिकोपयोगस्थापना ......................... २१३८ पर्यायनित्यताविधानम् ............................... २११६ | प्रायश्चित्तस्थलीय. शनी विया२५॥ .......... २१३८ अनुत्पागर्मित भुति असाध्य- हैन ........ २११६ | प्रायश्चित्ताशयोद्घाटनम् .......................... २१३९ सर्वथा शून्यतायां प्रतियोगिनिषेधाऽसम्भवः .......२११७ | 'दुःखं मा भूत्' इति प्रतीतितात्पर्याविष्करणम् २१४० लोकायतिकमतसमीक्षा . ..............................२११८ | मुक्तेः परमप्रयोजनतास्थापनम् ..................... २१४१ नास्तिमान्य मुक्तिनु नि।४२९ ............. ૨૧૧૮ | ०४ मुल्य हु:छ - हैन ............... २१४१ वीतरागजन्माऽदर्शनविवरणम् ..................... २११९ | कर्मणोऽपि मुख्यदुःखरूपता ............................२१४२ नानातन्त्रेषु स्थिरात्मसिद्धिः ................... २१२० ६:५४२५५९॥ हु:५३५ छ - हैन........... २१४२ पर्यायार्थतयाऽऽत्महानस्याऽनुद्देश्यता ............ २१२१ | कर्मक्षयस्य दुःखक्षयत्वेन प्रयोजनत्वम् ............ २१४३ वीतरागन्भमशन न्याय.................. २१२१ , मुक्तेः परमानन्दसंवलितता ......................... मुक्तौ नित्यसुखाभिव्यक्तिविचारः ...................२१२२ | 8नसंमत मोक्ष स्वतः आभ्य ................. ૨૧૪૪ तौतितमतसंभत मुक्तिना विया२९॥ ....... | असमानुष्ठानोपायपरामर्शः २१४५ शाश्वतसिद्धसुखपरामर्शः .. २१२३ તાત્ત્વિક વૈરાગ્ય સંગતિ ......... .....२१४५ आत्म-सुखयोरभेदाऽनभ्युपगमः ......................... २१२४ | वैराग्य-प्रशमयोः व्याघाताऽऽपादनम् .............. दीधितिकृतः पर्यायार्थिकनयमार्गणम् ............. २१२५ | समानाऽऽयव्यये परिश्रमवैफल्यम् ..................... तोतिनो सांज्यमतप्रवेश ................. .२.१२५ | तत्त्वचिन्तामणिकृन्मतनिरासः ......................... २१४८ असंवेद्यसुखानङ्गीकारः ................................. २१२६ | मुक्तिपुरुषार्थे विवेकोपयोगिता .................... २१४९ देहान्तामान्य भोक्षतक्षए५५ घोषस्त ....... २१२६ | निद्रायामपि सुखानुभवाऽस्तिता ................. २१५० अविद्यातर्जनम् .......................२१२७ | कर्मक्षयकामनया मुमुक्षुप्रवृत्तिः ........... .......२१५१ तयामी २न्यायमीमांसा................... २१२७ | गुणहानेरनिष्टता ........................................२१५२ अविद्यावादिवेदान्तिनां प्रच्छन्नबौद्धरूपता .......... २१२८ प्रथमभावेन प्रवृत्तौ सुखकामना प्रवर्त्तिका ....... २१५३ स्याद्वादस्य षड्दर्शनसमूहमयत्वम् .................. २१२९ | सुखार्थितानियतप्रवृत्तिप्रज्ञापना .................... २१५४ नमान्य मुस्तिनी सम४९५ ................. २१२८ | उभयाभावस्वरूपोहनम् . .............................२१५५ जीवन्मुक्तिविद्योतनम् ................................ २१३० | मयाभाव सोनी रीना निषेप न४३-...... २१५५ सूत्रनयमान्य मोक्षानुं प्रतिपान .......... २१३० | मुक्तौ श्रुतितः सुखसिद्धिः ...................... २१५६ सविकल्पाऽविकल्पज्ञानयोः युगपवृत्तिता ........... २१३१ | विशिष्टगुणसन्तानस्वरूपमीमांसा ................... २१५७ रणतापरामर्शः ............२१३२ www.jainelibrary.org २१४४ ૨૧૨૨ .................... .......... Jain Education International For Private & Personal Use Only

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