Book Title: Dwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 8
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Yashovijay of Jayaghoshsuri
Publisher: Andheri Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 181
________________ २२२४ • परिशिष्ट-६ . १५३१, १५४३, १५४५, १६३०, १६३१, १८६३, ७४६, ७७४, ७८३, ८०८, ८२०, ८६९, ८७२, १८८६, १९३२ ८९४, १२३२, १३१०, १३५७, १४६८, १४७९, (१६४) ऋषिमण्डलस्तोत्र २९५ १५१३, १६२२, १६८१, १७५७, १७७०, १८४६ (१६५) एककनिपातटीका १२२४ (१८९) कर्णभार. ७५ (१६६) एकाक्षरोपनिषद् १११३ | (१९०) कर्णामृत (गद्य) १४२७ (१६७) एकावली ७५२ (१९१) कर्मग्रन्थ १२८६ (१६८) ऐतरेयोपनिषद् २१०४ | (१९२) कर्मप्रकृति १५२८, २०२४ (१६९) ऐतरेयब्राह्मण २६६, ११७१, १२९८, १४२१ (१९३) कर्मप्रकृतिचूर्णि १६६१ (१७०) ऐतरेयारण्यक ८५३ (१९४) कर्मप्रकृतिवृत्ति (मलयगिरीय) १०१६, १०२०, (१७१) ऐतरेयारण्यकसायणभाष्य ५८६ १३९०, १७७५, १८३३ (१७२) ऐन्द्रस्तुतिचतुर्विंशतिकावृत्ति ४, ३९४ (१९५) कर्मप्रकृतिवृत्ति (यशोविजयगणिकृत) २०३५ (१७३) ओगिल्वीशब्दकोश ४६५ | (१९६) कर्मस्तव ७२६ (१७४) ओघनियुक्ति ३५, ५३, ५६, ६२, ७३, १६३, (१९७) कर्मस्तवप्राचीनकर्मग्रन्थ १४६३ ४२३, ४२४, ४२५, ४४२, ५२३, ५२७, ५२९, (१९८) कर्मस्तववृत्ति २१४, १०१६, १३८९, १५२८ ५३०, ५३१, ५३२, ५३३, ५३४, ५३५, ५३६, (१९९) कलाविलास १४२८ ६२५, ६७८, ७००, ९६९, ९७०, १४४८, १६४५, (२००) कलिविडम्बन १२९८ १६९२, १८८६, १९२५, १९२७, १९२९, १९४६, (२०१) कलिसन्तरणोपाय ४२१ १९५४, १९७६, २१७३, २०४४, २०६०, | (२०२) कल्पतरु २१५५ (१७५) ओघनियुक्तिभाष्य १०, ८५, ६४४, १६२१ (२०३) कल्पद्रुमकोश ४६३, ४६५ (१७६) ओघनियुक्तिवृत्ति ६२, ५२७, ५३१, ५३२, ५३५, (२०४) कल्पसूत्र ५, १६०, २६२, २७०, ४६०, ९६९, १९८९ १८५५, १८६०, २१५९ (१७७) औपपातिकवृत्ति १२९३ | (२०५) कल्पसूत्रसुबोधिका २७, ५५३, ६३४ (१७८) औपपातिकसूत्र ३५२, ४६२, ७१५, ८९८, ९४६, (२०६) कल्पसूत्रसुबोधिकावृत्ति ४६१ १२३४, १३८७, १८६४, १९७२, १९७३, २१६०, (२०७) कल्पावतंसिका १९१९ । २०३३ (२०८) कल्याणकन्दली ३९, ८९, ११९, १५७, २२०, (१७९) औशनसस्मृति ४८४, ८३६ (२०९) (षोडशकवृत्ति) ३१३, ३४४, ३५६, ५३८, ६९७, (१८०) कठरुद्रोपनिषद् ८९८, २१५६, २१५९ ६९८, ७००, ७०२, ७०३, १००९, १०२८, ११११, (१८१) कठवल्लिकोपनिषद् १११२ १२२२, १२२४, १२२५, १२२९, १२३७, १२४४, (१८२) कठोपनिषद् २९८, ५९४, ५९५, ८३२, ८५९, १३३७, १४४०, १९०६ ८९८, १०६१, १०६२, ११३३, १२३२, १६७०, (२१०) कल्याणमन्दिरस्तोत्र ४० १७२३, २१२६ (२११) कल्याणमन्दिरस्तोत्रवृत्ति १५७६ (१८३) कण्ठाभरण १७६८ (२१२) कवितामृतकूप १४६७, १६६६ (१८४) कथारत्नकोश ३०४, ३०५, ३६३, ३६४, | (२१३) कविराक्षसीय ८३६ ३६६, ४९६, ८५४, ९५९ (२१४) कषायप्राभृत १५२८ . (१८५) कथासरित्सागर ८५४, १४२८ ((२१५) कषायप्राभृतचूर्णि १०१५, १०१८ (१८६) कन्दरकसूत्र १६४९ (२१६) कषायप्राभृतवृत्ति १०१६ (१८७) कन्दोपनिषद् १४८२ | (२१७) कस्तूरीप्रकरण १४६९ (१८८) कपिलदेवहूतिसंवाद ९०, २९८, ३६३, ४४३, (२१८) कात्यायनोपनिषद् ९१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414