Book Title: Dwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 8
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Yashovijay of Jayaghoshsuri
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 271
________________ २३१४ • परिशिष्ट-११. जस्स णं चरित्तावरणिज्जाणं...(भग.९/४/३६५)......... १४२६ जह निम्बदुमुप्पन्नो की...(म.वि.६५६)......................८९८ जस्स णं 'सव्वपाणेहिं स...(व्या.प्र.७/२/२७०) .........१४२६/जह भायरं व पियरं, मिच्छा...(व्य.सू.भा. जस्स नत्थि पुरा पच्छा म...(आचा.१/४/४)........... २१२८ उद्दे.१०/४१४६)...................... जस्सन्तिए धम्मपयाइं सि...(द.वै.९/१/१२) ............ १९८१ | जह भोयणमविहिकयं विणासइ ...(सं.स.३५) ....... ८१,८९१ जस्स पुण मिच्छदिट्ठिस्स...(मूलारा.१/६१) ............... ९४९ जह मम न पियं दुक्खं, जा...(द.वै.नि.२/१५४) ..... १८८१ जस्स सामाणिओ अप्पा सज्ज...(अनु.द्वा.१२७, |जह मे इट्ठाणिढे सुहासु...(आ.चू.१/१/६)............ १८४५ आ.नि.७९७,वि.आ.भा.२६७९)................... १९३१ | जह व णिरुद्धं असुहं सुहे...(न.च.३४८)............... १२३७ जह उसरम्मि खित्ते पइण्ण...(वसुनन्दि.श्राव.२४२) ........ २२ जह वाहिओ अ किरियं पवज्जि...(पं.व.१२०) ..........८९० जह उस्सग्गम्मि ठिओ खि...(पञ्च.११७४)............. १९३७ जह विठ्ठपुङ्खुत्तो कि...(इ.प.श.६०) ...................८७१ जह एगं जिणबिम्बं तिन्नि...(चै.वं.म.२६)..................३२३ जह वि य लोहसमणो.....(व्य.भा.२/२६७१).................... जह एगा मरुदेवा अच्चन्तं...(यो.शा.१/११ वृ.)....... १८३९ जह वेलम्बगलिङ्गं जाणन्त...(आ.नि.११३७) ........... १४४७ जह कच्छुल्लो कच्छु क...(उप.मा.२१२)................१५४२/जह वोलूगाईणं पगासधम्मा...(वि.आ.भा.११०७).......१६९५ जह कागणीइ हेउं मणिरयणाणं...(म.वि.७२)..............८९८ जह सलिलेण ण लिप्पइ कमलि...(भा.प्रा.१५४).......१६४९ जह कायमणनिरोहे झाणं वा...(आ.नि.१४७५).........१९४५ जह सागरम्मि मीणा सखोहं...(ओ.नि.११७)..........१९२५ जह कारणं तु तन्तू पडस्स ...(पिं.नि.७०)............१९२८ |जह सूरस्स पभावं दट्टुं व...(बृ.क.भा.११३६).......१६९४ जह किम्पागफलाणं परिणामो ...(उत्त.१९/१७) ........ १५४५ जह सेडिया दु.....(स.सा.३५६)......... .........७३३ जह कुण्डओ ण सक्को सोधेउं...(मूलारा.११२०) ....... ८७३ जहा अस्साविणी नावं जाइअ...(सू.कृ.१/१/२/३१)....११३८ जह कोहाइविवढी तह...(नि.भा.२७९०, जहा कुम्मो सअङ्गाई सए...(सूत्र.१/८/१६)............ १८६० बृ.क.भा.२७११) ........ ................ १८५२ जहा जहा तं भगवया...(व्या.प्र.१/४/४१) २४५,२५६,१८३० जह खलु दिवसऽभत्थं रय...(आ.पता.९८१) ......... १२३५ | जहा णवणयराइसन्निवेसे के...(आ.नि.भा.१९४ चू.) .......६१ जह खलु मइलं वत्थं सुज्झ...(आ.नि.२८२) ..............७१६ जहा दुक्खं भरेउं जे होइ...(उत्त.१९/४०).............. १२९१ जह चिरसञ्चियमिन्धणमनलो प...(ध्या.श.१०१).......१२५० जहा दुमस्स पुप्फेसु भम...(द.वै.१/२)....................३९५ जह चेव उ मोक्खफला आणा आ...(पं.व.११९).......८९० | जहा निसन्ते तवणच्चिमाली ...(द.वै.९/१/१४)........ १९८१ जह चेवोवहयणयणो सम्मं रूवं...(उ.प.४४१).............८९४ जहा पुण्ण...(आ.सू.२/६/१०२)............. .................८४ जह जह तत्तरुइ तह तह त...(आ.नि.११५५)........ १४८७ | जहा पोमं जले जायं नोवलि...(उत्त.२५/२७) .......... १०८३ जह जह दढप्पइण्णो समणो वे...(म.वि.६३७) ........१२३६ जहा भुयाहिं तरिउं दुक्क...(उत्त.१९/४३)................. ४२१ जह जह दोसोवरमो जह...(म.स.६३२) ................. १४५१ | जहालुद्धगो हरिणस्स पिट्ठ...(नि.भा.१६४९चू.) ......... १२८ जह जह न समप्पइ विहिर...(व.ल.१०/७)............. ११६१ | जहा ससी कोमुइजोगजुत्तो, ...(द.वै.९/१/१५) ......... १९८१ जह जह सुयमोगाइ, अइस...(बृ.क.भा.११६७) ......... १४५४ | जहा सुणी पूइकण्णी णिक्क...(उत्त.१/४) .............. १९८० जह जिणसासणनिरया धम्म पा...(द.वै.नि.९४).......... ५२२ जहा हि अन्धे सह जोतिणा...(सू.कृ.१/१२/८) .......... २१० जह डहइ वाउसहिओ अग्गी रु...(म.प्र.प्र.१००) ...... १२०६ जहित्ता पुव्वसञ्जोगं नाइ...(उत्त.२५/२९) .............. १०८३ जह डहइ वायसहिओ अग्गी हरि...(म.वि.२९१)....... १२०६ | जाईसरणं च इहं दीसइ केसि...(धर्मसं.१४६) ........ २१२१ जह ण्हाउत्तिण्ण गओ बहुअत...(बृ.क.भा.११४७) ....... १६२ जा उण कामोवायाणविसया, वि...(सम.भ.१,पृ.३) ....... ६३८ जह तं बहु पसाहइ निवडइ अ...(ध.रत्न.११६)...... १२१६ जा उण तिवग्गांवायाणसम्ब...(सम.भ.१/पृ.४)............. ६६२ जह ते न पियं दुक्खं जाणि...(भ.प.प्र.९०)............१८४५ जा उण धम्मोवायाणगोयरा, ख...(सम.भव१/पृ.४)........६५३ जह दारुकम्मगारो भेअणभि...(द.वै.नि.१०/३३५)..... १८९६ जा खल अभाविया कस्सईहिं...(ब.क.भा.३६८)............८६ जह दीवो महति घरे पलीवि...(धर्म.३६६)...............५९४ |जा गण्ठी ता पढमं गण्ठि स...(वि.आ.१२०३ जह देहपालणट्ठा जुत्ताहा...(अ.म.प.२४) ............ १९५४ बृ.क.भा.९५) ......... .................. १०१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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