Book Title: Dwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 8
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Yashovijay of Jayaghoshsuri
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 191
________________ २२३४ • परिशिष्ट-६. ४३८ (६३४) प्रकरणपञ्चिका ७३४ १९७२, १९७३, १९७५, १९८०, १९९१, २०१५, (६३५) प्रजापतिस्मृति ४९६ २०३२, २०४४, २०५९ (६३६) प्रज्ञापनासूत्र ९०, ८९८, १४४१, १४६२, (६५९) प्रवचनसारोद्धारवृत्ति १३९, १८८, २९४, ३९३, १५२८, २१२३, २१६०, २०६१ ५५२, १०२६, १२०५, १२१२, १२८८, १३०४, (६३७) प्रज्ञापनासूत्रवृत्ति ४६४, ८९५, ८९६, १४२६, १३८५, १३८६, १३८८, १३८९, १४२६, १५२८, १५२७, १८४० १८११, १८१९, २०५९ (६३८) प्रणवोपनिषद् २९५, ११११, १११२ | (६६०) प्रव्रज्यायोगादिविधिसङ्ग्रह (६३९) प्रतिमानाटक ८३७, १४०२ | (६६१) प्रशमरति ४, ५६, २७२, २८०, ६३९, (६४०) प्रतिमाशतक २३ ६९३, ७३७, ८७७, ९७८, १२२७, १२५१, १२५२, (६४१) प्रतिमाशतकवृत्ति ३६३, ५२४, ६७६, १४०७ १५५५, १५७१, १८४८, १८८६, १९१८, १९२८, (६४२) प्रतिष्ठासारोद्धार ३०५ १९३२, १९३६, १९६१, २००२, २१६१ (६४३) प्रथमकर्मग्रन्थ २०४६ (६६२) प्रशमरतिअवचूरि ६३९, ८७७ (६४४) प्रदीप (पातंजलमहाभाष्यवृत्ति) ८२४ (६६३) प्रशमरतिवृत्ति ६३९, १८८० (६४५) प्रबन्धकोश १९ (६६४) प्रश्नव्याकरणसूत्र २०७, ६०८, १४४४, १४५०, (६४६) प्रबन्धचिन्तामणि १९, १२८४ १६३३, १७७१, १८४४, १८४५, १८४८, १८५१, (६४७) प्रबोधचन्द्रोदय १४८३, १५७५ १८६४, १८६८, १८७९, १८८२, १८८६, १९२१, (६४८) प्रबोधसुधाकर १६३० १९२९,१९३२,१९६५,१९६६ (६४९) प्रमाणनयतत्त्वरहस्य १४६५, १७१९, २१३०, (६६५) प्रश्नोपनिषद् २५३, ५०४,१५१३, १८०८ २१३२ (६६६) प्रश्नोपनिषद्भाष्य १८०८ (६५०) प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कारसूत्र ५२९, ५६९, (६६७) प्रसङ्गाहरण १४६७ ११९२, १३२५, १४६५, १५६०, १७१८, १७१९, (६६८) प्राचीनसामाचारीप्रकरण १९०५ २०६३, २१३०, २१३२ | (६६९) प्राणाग्निहोत्रोपनिषद् ४८६, ५२१ (६५१) प्रमाणमीमांसावृत्ति २०८८ (६७०) प्रेमगीता १२४०, १३९६, १५३१ (६५२) प्रमाणमीमांसासूत्र २३५, ५४१, ५४५, ६१४, १५६०, १६६७, १८५१ ७४७, ७५२, ७७७, ११३५, (६७१) बटुकोपनिषद् ११४४ १३२५, १७१८, १७१९ | (६७२) बार्हस्पत्यसूत्र ४७७, ४९४, ५०५, ५१५, ६३४, (६५३) प्रमाणवार्तिक ६०१, ७३४, १७१९, १७२२ ६३७, ८३९, ८४८, ८५०, ८५६, ८५८, ८७४, (६५४) प्रमाणसमुच्चय २०४ १५१७ (६५५) प्रमेयकमलमार्तण्ड २०२८,२०४१,२०६१,२०६३ (६७३) बालरामायण ९०१, १२८४, १३७९, १५०० (६५६) प्रवचनसार ३७६, ४२३, ४५४, ५३२, ७२७, (६७४) बाष्कलतन्त्रोपनिषद् २५३ ७३०, ९७०, १३६६, १५९४, १६३१, १६४८, (६७५) बिल्वोपनिषद् ४२२, ११०६, १६९६ १८६७, १८७३, १९१८, १९३१, १९३३, १९३४, (६७६) बुद्धचरित ८७२ १९३६, १९३९, १९४४, १९५१, १९५४, २०२८, (६७७) बृहज्जाबालोपनिषद् ४२२, ५८४, १५९६, १७७६ २०३०, २०६१ (६७८) बृहत्कल्पनियुक्ति २१६ (६५७) प्रवचनसारवृत्ति २०३० (६७९) त्कल्पभाष्य ३०, ३६, ४८, ५३, ५७, ८१, (६५८) प्रवचनसारोद्धार ५७, ८९, १६३, १८८, २६२, ८४, ८५, ८६, ८७, ११३, १२६, १२८, १३२, २६४, ३९३, ४४०, ५५२, ६२१, ८४०, ९२३, १३८, १३९, १४७, १४८, १६२, १६३, १८८, १२१२, १२३४, १४७७, १९५१, १९५२, १९७१, २१६, २७२, ३०८, ४१९, ४९५, ५२०, ५३२, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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