Book Title: Dwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 8
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Yashovijay of Jayaghoshsuri
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 200
________________ १७१०, १७७५ ( ९१५) वाग्भटालङ्कार ६६३, ६६९, ९५० १६८, १२२४ (९१६) वाचस्पत्यम् (९१७) वादमाला ३३७, ११७९, ११८३ (९१८) वायुपुराण ४८८, ७८३, ८६५, १०९९, १७६९, २१०५ ( ९१९) वार्तिक ( सूरेश्वराचार्यकृत) (९२०) वासवदत्ता १४६७ (९२१) वासुदेवोपनिषद् १६९६, १७७७ ( ९२२) विंशिकाप्रकरण ( यतिधर्मविंशिका, चरमावर्तविंशिका, दानविंशिका, योगविंशिका, शिक्षाविंशिका) • परिशिष्ट - ६ • ११२६ Jain Education International १५४२ २२४३ २०००, २०१८, २०६१, २०९६, २१०३, २१०८, २१११, २११२, २११९, २१२०, २१२९ (९३७) विशेषावश्यकभाष्यकोट्याचार्यवृत्ति १२३३ (९३८) विशेषावश्यकभाष्यमलधारवृत्ति ३९३, ७०२, ७१७, ८१९, ८२१, ८९२, १०१५, १०१७, १०२६, १०६५, ११७९, १२१६, १२३३, १२३७, १२९३, १३६४, १४६१, १४६५, १५२९, १६०१, १७७५, १८३२, १८३४, १८७८ १९०१ २, ८६, (९४१) विश्वामित्रस्मृति ४८८, १४८२ २५९, ३५५, ५३७, ६८३-६८६, ७२५, (९४२) विष्णुधर्मोत्तरपुराण ४८६, ४८७, ४९४, ६६९, (९३९) विश्रामोपनिषद् १११३ (९४०) विश्वसार ९९९, १५७५, १८४६ ८८०, ८८३, ९१४, ९९०, ११३०, ११५२, १२०४, १२०५, १३१२, १३१६, १६८२, १८३८, १८७३, (९४३) विष्णुपुराण २१४, ३३४, ४८६, ५०७, ५५६, १९०९, १९१०, १९११, २१६०, २१७८ (९२३) विक्रमार्कचरित १५१८ १२२३ ( ९२४) विक्रमोर्वशीय ( ९२५) विज्ञानामृतभाष्य ८२४ ७६३, ८५३, ८५८, ८६५, ८८५, १०६८, ११०७, १११६, ११२४, ११२९, ११७८, १२५१, १३५०, १४२१, १४७६, १४८३, १५९४, १६२२, १६४२, १६६४, १६८५, १७०२, १७३६, १७४१, १७४२, १७७२, १८२८, २१०४, २१५९ (९४४) विष्णुभक्तिचन्द्रोदय ५५८ ( ९४५) विष्णुस्मृति १६६६ ( ९२६) विदग्धमाधव (९२७) विद्धशालभञ्जिका (९२८) विद्यापरिणयन १६४८ (९२९) विधिशतक १४६४ ( ९४६) विसुद्धिमग्ग ४८८ (९३०) विनयपिटक (९३१) विपाकसूत्र ४६६, ४६७, ९४८, १५३७ (९३२) विमानपङ्क्त्युपाख्यान २०६२ (९३३) विमानवत्थु २८८, ६०७ १६२५, १६५८ (९३४) विवरणप्रमेयसङ्ग्रह ८२४ (९४८) वीतरागस्तोत्रवृत्ति २१६ (९३५) विवेकचूडामणि ३३०, ५३७, ६८६, ८६१, १३४९, (९४९) वीरस्तवप्रकीर्णक ११२४, २१६९ १९४२, २१२७-२१३० (९३६) विशेषावश्यकभाष्य ८६, १०२, १०४, २७१, (९५०) वेणीसंहार ८५५ (९५१) वेदान्तकल्पतरुपरिमल ७११ (९५२) वेदान्ततत्त्वविवेक २०३४ ३६०, ३८३, ३९१, ४०१, ५२७-५२९, ५९४, ६१५, ६२१, ६२२, ६२६, ६७३, ७०२, ७२३, (९५३) वेदान्ततत्त्वविवेकटीकाविवरण ८२४, ८२८, ८९२, ९४९, ९६९, १००५, १०१५ (९५४) वेदान्तपरिभाषा ८२१, २०९४ १०१७, १०३३, १०६५, १०७२, ११०८, ११२६, (९५५) वेदान्तसार २०९४ ११६९, ११७९, ११८८, १२१२, १२७४, १२८१, (९५६) वेदान्तसारवृत्ति २१२८ १२८५, १२८६, १२९३, १५८१, १६१०, १६३१, (९५७) वेधवास्तुप्रभाकर ३१७ १६६८, १६९५, १७००, १७७१, १८३२, १८३३, (९५८) वेरञ्जसूत्र १४३७ १८७६, १९३१, १९३८, १९४४, १९४६, १९६१, (९५९) वैखानस ५८४, १५९६ For Private & Personal Use Only ४९९ ८४५, ८५३, ८५७, ९५८, ९५९, ११२४, ११६१, १२१७, १२२४, १२३०, १२३७, १७२५, १८७३, १९२४ (९४७) वीतरागस्तोत्र ४०, २१६, २६२, २६४, ७६२, २१०५ www.jainelibrary.org

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