Book Title: Dwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 8
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Yashovijay of Jayaghoshsuri
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 216
________________ • परिशिष्ट-८. २२५९ शम्भु ८४३ सुग्रीव शूलपाणि १५७५, १५७६, १५८० सिंहगुहावासिमुनि ९९२ शाक्यपुत्र ११७ सिद्धत्थ २६२ शाण्डिल्य सिद्धसेनपण्डित ५७७ शान्तिनाथ ३२२, ११६८, १६३२ सिद्धान्त १२७४ शाम्ब ११९८ सिद्धार्थ २७१ शारिपुत्र १६०३ सीमन्धर ३२२, ९७९, १३६२ शालभूपाल २६१ सुगत २६२-२६४, २६६, २९७, ४५१, ५१५-५१६, ५१९, शालिभद्र ६०, ८५०, ११९८ ५६२, ९७१, १३९१, १४९८, १५७६, १५९८, शिव ११०६, ११२९, १५७६, १५८० १५९९, १६०२, १६०४ शिवभूति ४२६, ९९२, १२७३ ११२ शिवराजर्षि ७१४, १४११-१२ सुदर्शन श्रेष्ठी ७१४ शीतलाचार्य ११९८ सुधर्मस्वामी ६४० शुकदेव १८०३, २०७१, २०७२ सुनक्षत्र १५१७ शुक्र १५४८ सुबाहुकुमार ९४८ २६४ सुभद्द २६५, १९१९ शैलब्राह्मण २६५ सुमतिजिन ९९४ शौद्धोदनि २८९ सुमुख ९४८, २०३६ श्रावस्तिका १७२४ सुलसा १०६८ श्रेणिक १२१४, १२४८, १४०३, १४०४, १५३२, सुव्रत १४८२ १५३५, १८८०, १९१९, २१७० सुसुमा १८३६ श्रेयांस सुहस्त्याचार्य (सुहत्थी) २५, २६ ६० श्रेष्ठीपुत्र ६३५ सूर्यकान्ता १८८० षडानन १३४७ ३७० सोमिल १०६८ सगर २६५, १५४८ सौगत सङ्काश ३६९, ३७० ७१८, १७०२ स्कन्द सङ्गम (शालिभद्रजीव) ८५०, ११९८ २९६, २९७ स्कंधक १३०० सङ्गमसुर २६४ सत्यकी (सच्चइ) १५८० स्वयम्भू ८५, ६३५, १२०७, १६५७ सत्यवती स्वातिपुत्र २८९ १०८१ सदाशिव हनुमत् १७९३, १८१७ २९७ हर २१५, २९७, ११२४, ११७१-११७२, १५७६ सद्दालपुत्र २१२ हरि २९७, ११२४, ११७१-११७२, १५७६, १६०२ सद्दलसेण हरिकेश १३०६, १५६१ सनत्कुमार १०९९, ११०६, १८३१ हरिकेशी समरादित्य ६६२, ६८८, १३९० हरिणैगमेषि २७१ समिताचार्य १८३१ हरिभद्र ब्राह्मण ५७७ सम्प्रतिनृप १८, १९, २६, २०३, ९२४ हली २९७ सर्वानुभूति १५१७ हिरण्यगर्भ १३३१ साङ्ख्य ५७७ हृषिकेश १५७५ सारिपुत्त २६३, १४९७ हेमचन्द्रसूरि २११० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org सूर्याभदेव ६८८ ११

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