Book Title: Dwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 8
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Yashovijay of Jayaghoshsuri
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 239
________________ २२८२ अहिंसासम्भवश्चेत्थं दृ... (अ.सा. १२ / ४६ ) अहिंसासिद्धौ सत्यां त...( म.प्र. २ / ३५) अहिंसैषा समाख्याता या ... ( लिं. पु. ८ / ११ ) अहिंस्युत्पद्यते स्वर्ग... ( व .स्मृ. १/२९/३) अहिकरणमहोकरणं अहरगतीगाह... (नि.भा. २७७२) अहिगारिणा इमं खलु कारेय... (द.शु. १/१८) अहिगारी उ गिहत्थो सुहसय... (पञ्चा. ७/४) अहिगारी उ गिहत्थो सुहसय... (स.प्र.१ / २१) अहिगारी पुण एत्थं विणे...(यो.श. ९) अहियारी य इह... ( कथार.को. पृ. ६७ गा. ३) अहृदयवाचामहृदया एव प्रति...( न्या.ता.टी.) अहेः = सर्पस्य यथा कुण्ड... ( वाच. ) अहेरिव गणाद् भीतः सौहि...(सं.गी. ९/७७) अहेरिव हि धर्मस्य ...(म.भा. शान्तिपर्व- १३२/३०). . १५७० अहे वयइ कोहेणं... ( उत्त. ९/५४) ..... • परिशिष्ट - ११ ६२६ | आकिञ्चन्यं मुख्यं ब्र...( षोड. १२/१३) . १४३२ आकृष्टोऽपि हि ... (यो.शा.३/१५३ वृत्ति १२ ) . १४२० आक्खेवणी कहा सा विज्जाचर...(मूला. ६५६) . १८६६ आक्षिपति = आवर्जयति =... (प्र. रति . १८२ वृत्ति) . २८ आक्षिप्यते = मोहात्त...(स्था.४/२/२८२ वृत्ति) ३०४ | आक्षिप्यन्ते = आकृष्य... (ध.बि.२/१०) ३०४ आक्षिप्यन्ते = धर्मं प्र... (प्रशम. १८२ अव . ) ३०४ आक्षेपणीं तत्त्वविधानभू... ( ) ९३२ आक्षेपणीं विक्षेपणीं वि... (प्रशम. १८२) . ३०४ | आक्षेपण्या कथया आक्षि... (द.वै.नि.३/२०५ वृत्ति) . २०३४ | आक्षेपिणीं कथां कुर्या ...(आ.पु.१/१३५). . १२२४ आख्यायकः एकः सूत्रार्थ... ( स्था. ४/४/३४४वृ.) १०८१ आख्यायिका कथा खण्डकथा प...(का. अ.१/११) आगमग्रहणेन च द्वारगा...(बृ.क.वृत्ति ४५५३) ८४५ आगमतत्त्वं ज्ञेयं तदृ...(षो. १/१०). २९८ आगमतो उवउत्तो, तग्गुण... (द.वै.नि.१०/३४१) . ३९५, ४०२ आगमपदेन श्रवणं, अनु... (त. वै. १/४८ पृ. १२६) . १०७,१०८ आगमबलिया समणा नि...( व्य.सू.१०/३) १०८ आगमविहितं तम्मि पडिसिद्धं ... ( उ. प. ८७९) १८३९ | आगमश्चोपपत्तिश्च सम्पू... ( अ. उप. १ / ९). . १८४० आगमस्य श्रुतिः कार्या गु... (जै.गी.२५३) . ८६४ | आगमस्यार्थचिन्ताया भावनो...(अ.श. ८/९ ). . १६६१ आगमस्याऽविरोधेन ऊहनं त... ( अ. ना. १७) २५५ आगमहीणो समणो णेवप्पाणं प... ( प्र . सार. ३/३२) ......... १०७ । आगमाऽभ्यासात् तु स... ( द्वा.न.च.वृ. पृष्ठ. ३०१) १६६ | आगमिष्यदिति आगामिकालभावि...(उत्तरा . २९/२३) आगमेन च युक्त्या ... (लो.त.नि. १८). . २६६ | आगमेन च युक्त्या च योऽ...( लोक. नि. १/१८) १८१९ | आगमेनानुमानेन ध्यानाऽ...(यो.सा. प्रा. ७/४२). ..... . ३९३ | आगारिङ्गियकुसलं...(बृ. क. भा. २६४ पीठिका) . ३९३ आङ् ईषदर्थे, ईषत्... ( आचा. १/४/४/१३८ वृ.) ३९३ आचरिया पच्चुपट्ठातब्बा...( बा... (दी.नि.३/८/२६८) आचारः परमो ध.. (मनु. १/१०८) अहो अहं नमो मह्यं यस्य ...( अष्टा.गी. २/१४). अहो जिणेहिं असाव... (द.वै.५/१/९२). अहो निच्चं तवोकम्मं सव्व... (दशवै . ६ / २३) अहो निच्चं तवोकम्मादिसु... (उप.प. ६८४) अहो योगस्य माहात्म्यं... (यो.शा. १/१०). अहो योगस्य माहात्म्यं य...( धर्मा. ४ / १५८). अहोरात्रमध्ये दिवैकैकं ... ( या स्मृ. ५/३१८ वृत्ति). अहो ! विवेगो कुमारस्स,...(स. क. भव-९ / पृ. ८७३) अहो विष्टपाssधारभूता...(सिद्ध. द्वा. द्वा. २१/१९) अहो विस्मये नित्यं नामा... (द.वै.६ / २३ वृ.) आइया महाणो कालो विस...(पं.क.भा. १६१६) आकङ्खमानो आनन्द !... ( दी. नि. २/३/२१६, (पृ. ११५) आकखेय्य चे, भिक्खवे, भि...(म.नि. १/१/६८).. आकर्षणं = आकर्षः, प्रथमत... ( प्र . सारो.८३६ वृ.) आकर्षणमाकर्षः = एक. (वि. आ. भा. १४८५ वृत्ति) आकर्षाः = ग्रहणमोक्षलक्ष... (पं.व. ६२९ वृतिः) आकालमेते परार्थव्यसनि...( ल. वि. पुरुषोत्तमपद पृ. २४) आकाशगमनादीनामन्यासां सि... ( मान. १०/१४). आकाशमुत्पततु गच्छतु वा...( ) आकाशात् पतितं तोयं...( पां.गी. उपसंहार-८०) आकाशे गौरवं रौक्ष्यं वरणं... ( ) Jain Education International • १९०९ १८५४ ६३९ ६३९ ६४० ६३९ ६३९ ६४० ६३९ ६६० ६७९ १८४ ६६२ १९८८ ९३ १८७० ....... १२८४ . ३७६,१८६१ ३२ ११४० १५२० १०६ ११३५ ३७६ १८३५ ९४५ . २१४, ११४० २१४ १२८४ १९६९ १९२२ ८४१ ८४८, १८६६ ६४२ ८६१ . २९४,१०२९ | आचारः लोचाऽस्नानादिसाधु ... ( ध.बि. २/१० वृ.) १८१५ आचारहीनं न पुनन्ति वेदा:...( व . स्मृ. ६/३) ११९० | आचारहीननरदेहगताश्च... (बृ.परा. स्मृ.६/२११). १५७५ आचारो = लोचास्नानादि:, (द.वै.नि. ३ / १९४ वृत्ति) .. ६४२ १८१३ | आचार्यः = आचारं ग्राहयति,... ( या. नि. १/४). १०७५ १९७० www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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