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• परिशिष्ट-६ .
१५३१, १५४३, १५४५, १६३०, १६३१, १८६३, ७४६, ७७४, ७८३, ८०८, ८२०, ८६९, ८७२, १८८६, १९३२
८९४, १२३२, १३१०, १३५७, १४६८, १४७९, (१६४) ऋषिमण्डलस्तोत्र २९५
१५१३, १६२२, १६८१, १७५७, १७७०, १८४६ (१६५) एककनिपातटीका १२२४
(१८९) कर्णभार. ७५ (१६६) एकाक्षरोपनिषद् १११३
| (१९०) कर्णामृत (गद्य) १४२७ (१६७) एकावली ७५२
(१९१) कर्मग्रन्थ १२८६ (१६८) ऐतरेयोपनिषद् २१०४
| (१९२) कर्मप्रकृति १५२८, २०२४ (१६९) ऐतरेयब्राह्मण २६६, ११७१, १२९८, १४२१ (१९३) कर्मप्रकृतिचूर्णि १६६१ (१७०) ऐतरेयारण्यक ८५३
(१९४) कर्मप्रकृतिवृत्ति (मलयगिरीय) १०१६, १०२०, (१७१) ऐतरेयारण्यकसायणभाष्य ५८६
१३९०, १७७५, १८३३ (१७२) ऐन्द्रस्तुतिचतुर्विंशतिकावृत्ति ४, ३९४ (१९५) कर्मप्रकृतिवृत्ति (यशोविजयगणिकृत) २०३५ (१७३) ओगिल्वीशब्दकोश ४६५
| (१९६) कर्मस्तव ७२६ (१७४) ओघनियुक्ति ३५, ५३, ५६, ६२, ७३, १६३, (१९७) कर्मस्तवप्राचीनकर्मग्रन्थ १४६३
४२३, ४२४, ४२५, ४४२, ५२३, ५२७, ५२९, (१९८) कर्मस्तववृत्ति २१४, १०१६, १३८९, १५२८ ५३०, ५३१, ५३२, ५३३, ५३४, ५३५, ५३६, (१९९) कलाविलास १४२८ ६२५, ६७८, ७००, ९६९, ९७०, १४४८, १६४५, (२००) कलिविडम्बन १२९८ १६९२, १८८६, १९२५, १९२७, १९२९, १९४६, (२०१) कलिसन्तरणोपाय ४२१
१९५४, १९७६, २१७३, २०४४, २०६०, | (२०२) कल्पतरु २१५५ (१७५) ओघनियुक्तिभाष्य १०, ८५, ६४४, १६२१ (२०३) कल्पद्रुमकोश ४६३, ४६५ (१७६) ओघनियुक्तिवृत्ति ६२, ५२७, ५३१, ५३२, ५३५, (२०४) कल्पसूत्र ५, १६०, २६२, २७०, ४६०, ९६९, १९८९
१८५५, १८६०, २१५९ (१७७) औपपातिकवृत्ति १२९३
| (२०५) कल्पसूत्रसुबोधिका २७, ५५३, ६३४ (१७८) औपपातिकसूत्र ३५२, ४६२, ७१५, ८९८, ९४६, (२०६) कल्पसूत्रसुबोधिकावृत्ति ४६१
१२३४, १३८७, १८६४, १९७२, १९७३, २१६०, (२०७) कल्पावतंसिका १९१९ । २०३३
(२०८) कल्याणकन्दली ३९, ८९, ११९, १५७, २२०, (१७९) औशनसस्मृति ४८४, ८३६
(२०९) (षोडशकवृत्ति) ३१३, ३४४, ३५६, ५३८, ६९७, (१८०) कठरुद्रोपनिषद् ८९८, २१५६, २१५९
६९८, ७००, ७०२, ७०३, १००९, १०२८, ११११, (१८१) कठवल्लिकोपनिषद् १११२
१२२२, १२२४, १२२५, १२२९, १२३७, १२४४, (१८२) कठोपनिषद् २९८, ५९४, ५९५, ८३२, ८५९, १३३७, १४४०, १९०६
८९८, १०६१, १०६२, ११३३, १२३२, १६७०, (२१०) कल्याणमन्दिरस्तोत्र ४० १७२३, २१२६
(२११) कल्याणमन्दिरस्तोत्रवृत्ति १५७६ (१८३) कण्ठाभरण १७६८
(२१२) कवितामृतकूप १४६७, १६६६ (१८४) कथारत्नकोश ३०४, ३०५, ३६३, ३६४, | (२१३) कविराक्षसीय ८३६
३६६, ४९६, ८५४, ९५९ (२१४) कषायप्राभृत १५२८ . (१८५) कथासरित्सागर ८५४, १४२८
((२१५) कषायप्राभृतचूर्णि १०१५, १०१८ (१८६) कन्दरकसूत्र १६४९
(२१६) कषायप्राभृतवृत्ति १०१६ (१८७) कन्दोपनिषद् १४८२
| (२१७) कस्तूरीप्रकरण १४६९ (१८८) कपिलदेवहूतिसंवाद ९०, २९८, ३६३, ४४३, (२१८) कात्यायनोपनिषद् ९१० Jain Education International For Private & Personal Use Only
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