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पृ
पं.
२०४
१७
२०७
२३
२०८ ११
२०९ १६
२१३
२१८
२२०
२२८
२२९
२३०
२३१
२४०
२
♡ m
३
६
७
२१
२२
१४
२१
२०
२१
२
१४
ܐ
२३
२
X
४
२४१
१६
२४२ ४/६
२४३
२४४ | १०/२३
उनके
स्थानक का
चारिज्ञ के
दुध्य नया
अपध्यान
बध
जान
( ९ )
पड
अकांनिक
ज्य दा अनत
कम
जधीलोक
नायक
भोगों
काष्ठक
आशरणा
स्वाक्यात
मनपलन्द
राकने
जाणं
अशुद्ध
ने
दय
फ... निष्फल
नवीं
तानसी
.
शुद्ध
उनमें
स्थानक
चारित्र को
दुर्ध्यान या
पध्यान है
पडता
एकान्तिक
ज्यादा अनन्त
कर्म
अधोलोक
दायक
योगों
काष्ठ
अशरण
स्वाख्यात
मनपसन्द
बंधे
जाना
रोकने
ज्झाणं
ये
उदय
फल.... निष्फली
नहीं
तामसी