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(८)
अशुद्ध
शुद्ध
पोले
पोले हित तथा स्वभाव
रहित तथा स्वभाव
का ही घनी प्रचित्य तनुमात ३५ सामीप्येव
को ही घनो अचित्य तनूवात यदि कहो उप सामीप्येन
या मातिकी ग्रह याल योग्य (३)
मालिकी. यह काल भोग्य (३) उसको ज्ञान होने पर भी शतशः ग्रन्थों का ज्ञान
उसमें
ज्ञान
वद
स्वयं सांख्यदर्शना तब
वह स्वयं करता है। सांख्यदर्शन ....तत्त्व देश्य
हेश्य