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अध्याय दूसरा। ३२० वर्ष पूर्वके अनुमान परम निर्ग्रन्थ दिगम्बरी दीक्षा देनेवाले श्रीभद्रबाहु श्रुतकेवली १२००० साधुसंघ और मुनि प्रभाचंद्र (चंद्रगुप्तका द्वितीय नाम)को साथ लिये हुए मगध देशसे दक्षिणको जाते हुए इसी गुजरात देशमें होकर श्रीगिरनार पर्वत तक गये थे
और वहां अपनी आयु निकट जान अपने आचार्य पदका तिलक श्रीविशाखाचार्यको प्रदान किया था और फिर वहांसे मैसूरके श्रवणबेलगोला स्थानमें पहुंच कटवप्र पर्वतपर समाधि मरण ले स्वर्गधाम प्राप्त किया। . श्रीधरसेनाचार्यने प्रथम शताब्दीके अनुमान जिन पुष्पदंत और भूतवलि अतितीव्र बुद्धि मुनियोंको श्रीगिरनार पर्वतपर जैन सिद्धान्त पढ़ाया था। उन्होंने गिरनारसे ९ दिन चलकर कुरीश्वर ग्राममें आकर चतुर्मास किया था और श्रुतस्कंधकी महिमा विस्तारी
थी। और फिर दक्षिण देशको विहार किया था । (श्रुतस्कंध) ___यह कुरीश्वर गुजरात देशमें होना चाहिये। संभव है इसीका नाम बिगड़कर अंकलेश्वर हो गया हो। यह बड़ौदेके और सूरतके मध्यमें अब भी प्राचीन जिन बिम्बोंको शोभायमान किये हुए विराजित है।
श्रीजेनसेनाचार्य्यने अपने गुरु श्रीवीरसेनाचार्यकी करी हुई श्रीजयधवलकी टीकाको ६०००० श्लोकोंमें गुर्जर देश प्रतिपालक . श्रीअमोघवर्ष के राज्यमें वाटग्रामके भीतर शक संवत् ७५९
फाल्गुण सुदी १० को प्रातःकाल श्रीअष्टाह्निका महोत्सवके समय पूर्ण किया था । (जयधवल प्रशस्ति)
यह गुजरात देश श्रीशुभचंद्र, सकलकीर्ति, ज्ञानभूषण आदि
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