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Dr. Charlotte Krause : Her Life & Literature
रुष्ट स्यारनी ने उनको तीन रात तक विदीर्ण कर खाया। इस रीति से भक्षित होते हुए भी उन्होंने उत्तमार्थ प्राप्त किया ।। 66 ।।
'मरणसमाहि पइण्णं'12 का वर्णन कुछ अधिक विस्तृत और ऐतिहासिक दृष्टि से रुचिकर है। वह निम्नलिखित है :
सोऊण निसासमए नलिणिविमाणस्स वण्णणं धीरो । संभरियदेवलोओ उज्जेणि अवंतिसुकुमालो ।। 435 ।। घित्तूण समणदिक्खं नियमुज्झियसव्वदिव्वआहारो । बाहिं वंसकुडंगे पायवगमणं निवण्णो उ ।। 436 ।। वोसट्ठनिसटुंगो तहिं सो भल्लुंकियाइ खइओ उ । मदरगिरिनिक्कपं तं दुक्करकारयं वंदे ।। 437 ।। मरणमि जिस्स मुक्कं' सुकुसुमगंधोदयं च देवेहि ।
अज्जवि गंधवई सा तंच कुडंगीसरट्ठाणं ।। 438 ।।
अर्थात् “उज्जैन में रात के समय में नलिनी विमान ( नामक स्वर्ग) का वर्णन धीरतापूर्वक सुनने वाले अवन्तिसुकुमाल को देवलोक का (जाति) स्मरण हुआ ।। 435 ।।
अपने समस्त दिव्य भोगों को छोड़ते हुए उन्होंने जैन-साधु-दीक्षा ग्रहण की और बाहर 'वंस कुडंग' में 'पायवगमण' (नामक समाधिमरण ) को अंगीकार किया ।। 436 ।।।
___ अपना निःसह ( अर्थात् कोमल ) शरीर वहाँ छोड़कर वे शृगाली से भक्षित हुए। मन्दिर-पर्वत जैसे निष्कंप इस महात्मा को, जिन्होंने ( ऐसा ) दुष्कर काम किया, मेरी वन्दन हो ।। 437 ।।
उनके मरण ( के समय ) पर देवताओं ने उत्तम फूल और सुगन्धित जल बरसाया। आज भी वह गन्धवती ( नदी) और वह कुडंगीसर का स्थान ( वहाँ विद्यमान) है ।। 438 ।।"
उपर्युक्त गन्धवती और इस नाम का घाट आज भी क्षिप्रा तट की पूर्व दिशा में श्री अवन्तिपार्श्वनाथ के जैन मन्दिर के पास उज्जैन में विद्यमान है। वह स्थान प्राचीन काल में जंगल और श्मशान था, यह हर किसी को ज्ञात है। वहाँ क्षिप्रा में मिलने वाला आधुनिक संकुलित नगर का मैला पानी ले जाने वाला 'गन्धवती नाला' अथवा 'गन्दा नाला' एक समय स्वच्छ जल की एक छोटी नदी था। इस नदी का 'गन्दे' पानी से सम्बन्ध रखने की कल्पना तो दूर रही, उसी को 'स्कन्दपुराण' के 'अवन्तिखण्ड' में ( 16.4 ) 'पुण्या' और 'त्रैलोक्यविश्रुता' जैसे विशेषण दिये गए हैं
और कालिदास ने उसके कमल-पराग से सुगन्धित पवन और उसमें जलक्रीड़ा करने वाली युवतियों का रमणीय उल्लेख किया है। ( मेघदूत, पद्य 35 )
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