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Appendix
जब उनका मुनिराज श्री विद्याविजय जी म. के दर्शनार्थ शिवपुरी आना होता तब बच्चों के लिये मिठाई-फल आदि कुछ न कुछ जरूर लेकर आती थीं। बच्चों के साथ में खेल में भी कई बार हिस्सा ले लेती थीं। हिन्दी - गुजराती भाषा का भी अच्छा ज्ञान था, उच्चारण भी सही करती थीं। उनका चेहरा भी उनकी धर्मप्रियता और सात्विकता का परिचय सहज ही देता था । मेरी स्मृति में आज तक उनकी भक्ति भावना जुड़ी हुई है, जो हमेशा जुड़ी रहेगी।
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पद्मसागर सूरि
वि. सं. 1984 में उपाध्याय मुनि मंगलविजय जी ने शास्त्रविशारद श्री विजयधर्म सूरि जी के जीवन पर काव्यमय रास 'धर्म जीवन प्रदीप' लिखा जो श्री यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर से सन् 1928 में प्रकाशित हुआ था। इसके परिशिष्ट में इतिहास-तत्त्व - महोदधि आचार्य श्री विजयेन्द्र सूरि जी का भी संक्षिप्त जीवन परिचय काव्य में लिखा है। इस प्रकरण में उन्होंने जैन जर्मन श्राविका डॉ. सुभद्रा देवी रास (डॉ. शैर्लोट क्राउज़े) गुजराती भाषा में प्रकाशित किया है। उसी को यथावत् मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ जिससे पाठकगण स्वयं निर्णय कर सकेंगे कि वह जर्मन श्राविका कितनी महान थीं और किस प्रकार उन्होंने जैन धर्म को ग्रहण किया तथा अपनी सेवायें दीं।
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