Book Title: Charlotte Krause her Life and Literature
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 660
________________ Appendix 615 पत्र व्यवहार गुरुदेव संगाथे, चाले प्रश्नोत्तर संगाथे रे ।। प्रेमघणो गुरुदेव संगाथे, गुरु-वचन प्रमाण साथे रे ॥ ५ ॥ पारसी ने वली जैन धर्मना, अभ्यासे ते भारते आवेरे । विश्वविद्यालय अनुमति मानो, मुंबइमां प्रथम ते जावे रे ॥ ६ ॥ आगमन पत्र खीवाणदी दीधो, विजेन्द्र सूरिजी ने सिध्धोरे । उतारो सकलात वालो नो लीधो, पारसी धर्मनो अभ्यास की धोरे ॥ ७ ॥ परिचय जैन श्रावकों नी साथे, सूरिपत्र तणे अनुसारे रे । नागरदास सहायक संगाथे, गुजरात मुख्य नगर मां सार रे ॥ ८ ॥ भ्रमण करी सूरि-दर्शनकाजे, आबू तीर्थ मांहे सरि राजे रे । दर्शन धर्म-प्रचार बहु राजे, सात दिवस त्यां स्थिरता छाजे रे ।। ९ ।। शिवपुरी मांहे अभ्यासनी काजै, शासन दीपक परिचय बाधे रे । प्राचीन रास उत्तराध्ययन राजे, अभ्यास प्रबल पणे छाजे रे ॥ १० ॥ आचार विचारे शुद्ध साधु निहाली, बीज श्रद्धातणां रोपाय रे । संवेग रंग वासनारढी आली, अंतर आतमे वास सुहाय रे ।। ११ ॥ साधु अने गृहस्थ धर्म आचारो, विद्यावारिधि समणावे प्यारो रे । रावक धर्म-ग्रहण जिज्ञासा धारो, वधे प्रतिदिन ते मनोहारो रे ॥ १२ ॥ व्रतग्रहण-अभिलाषाओ आवे, नयां शहर सूरीश्वर पास रे । व्रत-स्वरूप खूब दृढ़ समझावे, जयंतविजय सुवास रे ॥ १३ ॥ श्रावण वदिपंचमी शुभ दिवसे, ब्यासी ओगणी संवत धार रे । शाहजी शाहना न्होराने विशे, प्रजा उलट तणो नहीं पार रे ॥ १४ ॥ पब्लीक जन पाँच हजार जाणो, जैनेतर-बहुत अवधारो रे । मध्य मंडपमांहे नाण बखाणों, जिनराज चौमुखे अवधारो रे ॥ १५ ॥ शुद्धि क्रिया सुणे सह शांत भावे, समकत चाला वो मुख्य धार रे । नाम निक्षेपों भारतीय भावे, देवी सुभद्रा अति मनोहार रे ॥ १६ ॥ व्रताष्टक पण साथ विचारो, अभयचन्द्र तेहमां अवधारो रे । वीर-वाणी शुद्ध घोष प्रचारो, सूरीश्वर-मुखथी मनोहारो रे ॥ १७ ॥ शुद्धि प्रथम ते जैनोमां जाणो, सूरीश्वर ने 'मल्यो सारोटाणो रे । भरतीयोनी घणी ने जाणो, यूरोपीयन प्रथम बखाणो रे ॥ १८ ॥ जय जय कार नगर फेलाणो, मले भेद बहुत प्रमाणो रे । धर्म भगिनी सहु पहेचाणो, जैन धर्म व्याख्याने गवाणो रे ॥ १९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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