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Appendix
हर्टेलवर्यस्य गुरोः सुशिष्या
मा भारतं प्राप्य विजयेन्द्रसूरिम् ।
उपास्य तं ज्ञाननिधिं वरेण्या
दीक्षामगृहणाद् जिनधर्मनिष्ठाम् ॥ २ ॥
वे डॉ॰ जॉन हर्टेल की सुशिष्या थीं । उन्होंने भारत में आकर जैन आचार्य श्री विजयेन्द्र सूरि से जैन-धर्म की दीक्षा ली ॥ २ ॥
जैनस्य धर्मस्य प्रचारकार्ये
अहर्निशे सा सततं प्रवृत्ता ।
साऽयापयत् सात्विक जीवनं स्वं
साध्वी सती भोग विरक्तभावा ॥ ३ ॥
डॉ. क्राउज़े जैन-धर्म के प्रचार कार्य में दिन-रात लगी रहती थीं । उन्होंने अपना सात्त्विक जीवन बिताया। वे सांसारिक भोग-विलासों से दूर रहती थीं और उन्होंने एक सती- साध्वी का जीवन बिताया ॥ ३ ॥
श्रद्धा तपस्त्याग सुमूर्तिरेषा नित्यं सुशास्त्राध्ययने शिक्षाविभागे तु निदेशिका सा
प्रवृत्ता ।
शिक्षाप्रसारे व्यदधात् प्रयत्नान् ॥ ४
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सुश्री सुभद्रा देवी श्रद्धा, तप और त्याग की मूर्ति थीं । वे सदा शास्त्रों के अध्ययन में लगी रहती थीं । वे सिंधिया शासन में शिक्षा विभाग में उपशिक्षा के निदेशक के पद पर कार्यरत रहीं और शिक्षा - प्रसार में विशेष योगदान किया ॥ ४ ॥
स्वशास्त्रज्ञानेन बुधान् प्रसाद्य
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स्वसत्त्ववृत्त्या कलुषं प्रमार्ण्य ।
त्यागेन योगेन गुणेन भक्त्या लेभे सती लोकसमादरं
सा ॥ ५ ॥
सुश्री सुभद्रा देवी ने अपने शास्त्रीय ज्ञान से विद्वानों को प्रसन्न कर दिया था। उन्होंने अपने सात्त्विक भावों से अपने पापों को धो दिया था । उन्होंने अपने त्याग, योग-साधना, गुणों और अभिभाव से सभी लोगों का आदर प्राप्त किया था ।। ५ ।।
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