Book Title: Charlotte Krause her Life and Literature
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshwanath Vidyapith
________________
496
Dr. Charlotte Krause : Her Life & Literature
तरै नासकेत कह्यौ* :68 'गंगाजी सनांन करण गया छै*।'०१ तरै नासकेतनै रषेस्वर कह्यो* :7° 'थारी मातानै बुलाय ल्याव* :1 मारो पिता तोनै बुलावै छै* !'72
तरै चंद्रावती बोली* :73 रे पुत्र! थारी बुलाई कोई नाउ* !'4 हुं तो कन्या छू* !?s मोनै पिता के भाई देसी, तो आवसुं*76 तरै नासकेत आयनै कह्यो* !77 तरै उदालकजी नासकेतनै फेर पाछो मेलीयो* : वलै जाइनै पुछ* :' थारो बाप कुण छै*?७० नै पुत्र क्युं करनै हुवो छै*?'81 तरै नासकेत जायनै पुछीयो*182
तरै चंद्रावती कह्यो* :33 'हुं राजा रुंघरी बेटी छु*184 हुं गंगाजी दस हजार सहेलीयां सं गई थी*।'85 तलै कमलरो फुल तिरतो थको आय नीसरीयो*। सो मै मंगायने सुंघीयो*137 तिण सु मारै आधांन रह्यो। तरै मोनै वन मै मेल आया*।१ तरै हूं रुंदन करती थी*१० तठै तिणबंध रषेस्वर आय नीसस्या तिणा मोनै दिलासा देनै, आपरै आश्रम ले आया*। तरै महीना पुरा हुवा, जठै नासका पेड होयनै पुत्र हुओ।' नाम नासकेत दीधो*15 महीना तीनरो हुंवो जठै रुंदन करण लागो* तरै मै कठपिजरा मै घातनै गंगाजी माहे प्रवाह दीयो*197 - जै समाचार नासकेत उदालकजी आगै कह्या*। तरै उदालकजी कह्यो* 'फेर पाछो [2b] जायनै कहजे* :११ हुं राजा रुघ कनै कन्यादान मांगण- जाउ छु*11०० तुं थारे आश्रम जा*!101 तरै नासकेत चंद्रावतीनै कह्यो*।102 तरै चंद्रावती आपरै आश्रम गई*1103 नै उदालकजी राजा रुंघ कनै कन्यादान मांगणनै गया*1104
इति तृतीयोध्याय समाप्तं*105 रषेस्वर आवता देषनै, राजा रुंघ सांमो बहूत अस्तुति कीनी*।' आसण दीयो*।' प्रदक्षिणा देनै पुछीयो* : 'महाराज रषेस्वरजी! किंतरैक कांम पधारीया छो*?'4 तरै रषेस्वरजी बोल्यो* : मोनै कन्यादान द्यो* !' तरै राजाजी कह्यो* :' 'कन्या थी, पिण मर गई* हुंती। तो उजर कोई करता नही*।' तरै उदालकजी मांडनै वांत कही।
हुँ गंगाजी सनांन करण गयो थो*' तटै अपछरांरा रथ दीठा*। तरै मन चालीयो < नै वीरज पिंसीयो>113 सो तपस्यारो वीर्य धरती मेल्यो न जाय* तरै कमल तोड, वीर्य माहे घातिनै, गंगाजी माहे प्रवाह दीयो*115 सो तिरतो थको, आय नीसरीयो*16 सो चंद्रावती
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674