Book Title: Charlotte Krause her Life and Literature
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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Ancient Jaina Hymns
447
काम-घट देव-मणि देव-तरु फलियउ
तीह घरि जीह रहिं सामि तउं मिलियउ ।। 13 ।। कर-जुअल जोडि करि वयण तू निसुणिसो
बाल जिम हेल देइ पाय तुह पणमिसो । महुर सरि तुम्ह गुण-गहण हउं गायसो
निय-नयणि रूव रोमंचिउ जोइसो ।। 14 ।। तुम्ह पासि ठिउ चरण परिपालिसो
हणिअ कम्माणि केवल-सिरिं पामिसो । तुम्ह जिणु निअय-करु सिरसि संठविसउ
सोवि कईआवि y होइसिइ दिवसउ ।। 15 ।। भरह-खित्तम्मि सिरि-कुन्थ-अर-अन्तरे
जम्म पुण्डरिगणी विजय पुक्खलवरे । मुणिसुवय-तित्थ-नमि-अन्तरं इह जया
रज्ज-सिरि परिहरवि गहिय संजम तया ।। 16 ।। हणिय कम्माणि लहु लद्ध केवल-सिरी
देहि मे दंसणं नाह करुणा करी । भाविए उदय जिणि सत्तमे सिव गए
बहूअ-कालेण सिद्धिं गमी सामिए ।। 17 ।। मोह-भर मान-भर लोभ-भर भरियउ
राग-भर दम्भ-भर काम-भर पूरिउ । एह परि भरह-खित्तम्मि मूं सामिअ
सार करि सार करि सार करि (तारि) गोसामिअ ।। 18 ।। भोग-पद राज-पद नाण-पद सम्पदं
चक्कि -पद इन्द्र-पद जाव परमं पदम् । तुज्झ भत्तीइ सव्वं पि सम्पज्जए
एह माहप्प तुह सयल जगि गज्जए ।। 19 ।। तुंहजि गति तुंहजि मति तुंहजि मम जीवनम्
तात तउं परम गुरु कम्म-मल-पावनम् ।
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