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Jaina Sāhitya aur Mahākāla-Mandira
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महादेव' के नाम से पूजी जाती हैं।
पुराण-सम्पादन-काल से कुटुम्बेश्वर महादेव के परिवार में इतना परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हुए भी उक्त महादेव का मृत्यु के साथ सम्बन्ध रखना अभी भी यहाँ तक माना जाता है कि किसी हिन्दू कुटुम्ब में कोई अवसान होने के पश्चात् मृत के कुटुम्बजन शुद्धिकरण के लिए उनका दर्शन करने को आते हैं, ऐसा उज्जैन के सुप्रसिद्ध ज्योतिषी और पुरातत्त्ववेत्ता श्री सूर्यनारायणजी व्यास महाशय से ज्ञात हुआ है।
इस ‘कुटुम्बेश्वर महादेव' और जैनग्रन्थों के 'कड्गेश्वर महादेव' का सम्बन्ध निकालने का अधिकार केवल स्थान के साम्य और नामों के सादृश्य (विशेषतः प्राकृत में 'कुडुंगेसर', 'कुडुम्बेसर' ), या उक्त प्रति के अनुसार नामाभेद ही पर निर्भर नहीं है। किन्तु दोनों का कुछ ऐतिहासिक सम्बन्ध होना ही चाहिए, इस अनुमान को उपर्युक्त 'चौरासी महादेव' के शिलापट्ट से भी पुष्टि प्राप्त होती है। उस शिलापट्ट पर उत्कीर्ण मूर्तियों का निरीक्षण करने पर ज्ञात होता है कि वे न तो चौरासी हैं और न महादेव ही की मूर्तियाँ हैं। ऊपर से नीचे तक गिनकर मूर्तियों की 20 अथवा 21 पंक्तियाँ हैं। शिलापट्ट का नीचे का किनारा इतना जीर्ण हो गया है कि सबसे नीचे की पंक्ति के स्थान पर सचमुच मूर्तियों की एक पंक्ति अथवा कोई शिलालेख आदि विद्यमान था, इस बात का निर्णय नहीं किया जा सकता है। ऊपर की 9 तथा नीचे की 9 पंक्तियों में ( सबसे नीचे की सन्दिग्ध पंक्ति को छोड़कर ) 9-9 छोटी मूर्तियाँ विराजमान हैं। मध्य भाग की दो पंक्तियों में मात्र 3-2 मूर्तियाँ हैं, जिनसे घेरी हुई एक बड़ी मूर्ति शिलापट्ट के केन्द्र-स्थान पर विराजमान है। इस मूर्ति के सिर पर एक 5 या 7 फण वाले सर्प का आकार अस्पष्ट रीति से दिखता है। इस रीति से मूर्तियों की कुल संख्या 175 अथवा यदि 21 पंक्तियाँ समझी जाँय तो 184 है। सब पद्मासनासीन और शिल्पशास्त्र के नियमानुसार सिद्ध या तीर्थङ्करों की मूर्तियाँ हैं। केन्द्रस्थ बड़ी मूर्ति सातवें तीर्थङ्कर श्री सुपार्श्व अथवा तेईसवें श्री पार्श्वनाथ की हो सकती हैं।
___ इसी आकार के और ऐसी ही उत्कीर्ण मूर्तियों से सजाए हुए शिलापट्ट आज भी जैन शिल्पकला की उस निर्मिति में देखे जा सकते हैं, जिसका एक उदाहरण 'सहस्रकूट' नाम से प्रसिद्ध है। वह “सहस्रकूट' शत्रुञ्जय जैन तीर्थ में 'पाँच पाण्डवों की देरी' के पिछवाड़े के एक छोटे मन्दिर में विद्यमान है ( देखिए एस. एम. नवाब, 'भारत नां जैन तीर्थों', अमदाबाद, ई. सन् 1942, पृ. 33, चित्र नं. 70 और नोट )। वह श्वेत संगमरमर की, वैसे ही चार शिलापट्टों की एक निर्मिति है, जिसका नोकदार शिखर इसी शैली के छोटे शिलापट्टों से बनाया हुआ है। उक्त सहस्रकूट पर उत्कीर्ण मूर्तियों की कुल संख्या (शिखर की मूर्तियों सहित ) 1028 है। सम्भव है कि कुटुम्बेश्वर महादेव के मन्दिर का शिलापट्ट वैसे ही एक 'सहस्रकूट' के नीचे के
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