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Dr. Charlotte Krause : Her Life & Literature
उक्त शिलापट्ट उसी मन्दिर में आतिथ्य भोगने लगा होगा, जिसके मूल-मन्दिर के केन्द्रस्थान में वह एक बार महात्मा के स्तूप की एक दीवार था। कदाचित् स्तूप के शेष भाग और भद्रकाली या भद्रा श्राविका का चित्र भी किसी दिन इसी भाँति प्रादुर्भूत होकर दर्शन देंगे। (8) मुनि-स्मारक और महाकाल
मुनि-स्मारक-मन्दिर और उसमें से उत्पन्न हुए मन्दिरों के इतिहास की उपर्युक्त रूपरेखा के आधार मुख्य करके 'मरणसमाहि-पइण्णं', भद्रेश्वर-कृत 'कथावली' ( परन्तु वह केवल कुछ अंश से ), प्रभाचन्द्र-कृत 'प्रभावक-चरित' और जिनप्रभ सूरि कृत 'विविध-तीर्थकल्प', इतने ही ग्रन्थ हैं, जिनमें 'कुडंगेश्वर' नाम विविध रूप धारण करता हुआ, प्रस्तुत सम्बन्ध में प्रयुक्त है। . वह नाम श्री हरिषेण-कृत 'बृहत्कथा-कोश' आदि दिगम्बर-ग्रन्थों में नहीं पाया जाता है। हरिषेण के एक पद्य ( 242 ) के अनुसार मुनि का समाधि-स्थान 'महाकालवन' में और एक दूसरे पद्य (260) के अनुसार उसी महाकालवन में आई हुई 'गन्धवती नदी' और 'कलकलेश्वर मन्दिर' के पास और श्री नेमिदत्त के अनुसार 'गन्धवती' नदी और 'महाकाल' के पास था ( देखिए ऊपर की अवतरणिकाएँ)। परन्तु वे सब स्थान 'कंथारिकावन' में विद्यमान होने से उपर्युक्त इतिहास इन उल्लेखों से बाधित नहीं होता है।
बाधा तो कुछ श्वेताम्बर ग्रन्थकारों के इस आशय के कथन में विदित होती है कि श्री अवन्तिसुकुमाल का स्मारक मन्दिर हिन्दुओं से ग्रहण किए जाने के पश्चात् महाकाल ही का मन्दिर बना। ऐसे उल्लेख श्री जिनदास गणि महत्तर, श्री हरिभद्र सूरि, 'आवश्यक कथाओं' और 'दर्शनशुद्धि' के कर्ता, श्री हेमचन्द्राचार्य, श्री सोमप्रभाचार्य, श्री राजशेखर सूरि, श्री मेरुतुंगाचार्य, श्री तपाचार्य, "पुरातन-प्रबन्ध-संग्रह' के कर्ता, श्री शुभशील गणि, श्री विजयलक्ष्मी सूरि और श्री संघतिलक सूरि की कृतियों में से उद्धृत किए जा चुके हैं।
इसके अतिरिक्त, 'आवश्यक-कथाओं', 'दर्शनशुद्धि', श्री हेमचन्द्राचार्य कृत 'परिशिष्टपर्वन्', श्री सोमप्रभसूरि कृत 'कुमारपाल-प्रतिबोध', श्री मेरुतुंगसूरि कृत 'प्रबन्ध-चिन्तामणि', श्री राजशेखर सूरि कृत 'प्रबन्धकोश' और श्री शुभशील गणि कृत 'विक्रमचरित्र' तथा 'भरतेश्वर-बाहुबलि-वृत्ति में यह और भी कथित है कि 'महाकाल' शब्द स्वयं ही श्री अवन्तिसुकुमाल के 'महान् काल', अर्थात् 'महान् मृत्यु' पर से बन गया है ( देखिए ऊपर दी हुई अवतरणिकाएँ)।
प्रथमतः इन दो बातों में से इस शब्द-व्युत्पत्ति का निराकरण करना अधिक सरल है, क्योंकि वह इस कारण से देखते ही असम्भाव्य ज्ञात होती है कि एक तो 'महाकाल' शब्द महादेव के एक नामान्तर के रूप में जैनागम में भी प्रयुक्त है। वह
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