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Dr. Charlotte Krause : Her Life & Literature
में रचित है। उसमें ऐ 'श्री अवन्तिसुकुमाल-मुनि-कथानक' ( कथानक नं. 126, पृ. 297 आदि ) है, जिसमें प्रस्तुत वृत्तान्त अति विस्तारपूर्वक 260 पद्यों में कथित है। इस कथानक के अनुसार महात्मा की माता यशोभद्रा, उनका धर्मगुरु जिनसेन और उज्जैन के तत्कालीन राजा-रानी प्रद्योत और ज्योतिर्माला हैं। अवन्तिसुकुमाल के घर की लक्ष्मी एवं अपूर्व वैभव का अति विस्तृत वर्णन दिया गया है। इसके अतिरिक्त, सब पात्रों के (स्यारनी और उसके बच्चों तक को न छोड़कर ) पूर्व जन्मों की श्रृंखला भी वर्णित है। अन्त में अवन्तिसुकुमाल के मृत्यु-स्थान के सम्बन्ध में निम्नलिखित पद्य
श्रीमदुज्जयिनीतोऽयं दक्षिणद्वारगोचरः । स्तोकमार्गमतिक्रम्य स प्रदेशो विराजते ।। 256 ।। अवंतीसुकुमालोऽयं यत्र कालगतो मुनिः । कापालिकैः प्रदेशोऽसौ रक्ष्यतेऽद्यापि पुण्यभाक् ।। 257 ।। तत्र कापालिकानां च दत्त्वा मूल्यं बहु स्फुटम् । पुण्यबुद्ध्या दहन्त्येते मृतकानि महाजनाः ।। 258 ।। देवैर्गन्धोदके मुक्ते तस्मिन् काले गते मुनौ । सुगन्धीभूतसर्वाशा जाता गन्धवती नदी ।। 259 ।। तद्भार्याभिस्तरां तत्र कृते कलकले सति ।
बभूव लोकविख्यातो देवः कलकलेश्वरः ।। 260 ।।
अर्थात् “यह प्रदेश उज्जैन से ( आने वाले) मार्ग का थोड़ा सा उल्लंघन करने पर दक्षिण दरवाजे के पास जाता है ।। 256 ।।
जहाँ मुनि अवन्तिसुकुमाल की मृत्यु हुई थी। इस पुण्यशाली प्रदेश की रक्षा आज तक कापालिकों से की जाती है ।। 257 ।।
स्फूट रीति से कापालिकों को बहुत द्रव्य देकर महाजन लोग वहाँ पुण्यबुद्धि से अपने शवों का दाह-संस्कार करते हैं ।। 258 ।।
जब इस मुनि की मृत्यु हुई तब देवताओं ने सुगन्धित जल बरसाया। इससे सब दिशाओं को सुगन्धित करती हुई गन्धवती नदी उत्पन्न हुई ।। 259 ।।
उनकी पत्नियों ने वहाँ 'कलकल', अर्थात् कोलाहल किया। इससे लोकविख्यात कलकलेश्वर की उत्पत्ति हुई ।। 260 ।।
प्राचीन उज्जयिनी आधुनिक उज्जैन से कुछ दूर उत्तर की ओर लगभग उस स्थान पर विद्यमान थी जहाँ आजकल भैरवगढ़ और कालभैरव मन्दिर तथा आसपास के प्राचीन प्राकार के भग्नावशेष दिखते हैं। आधुनिक 'चौबीस खम्भों' का प्रसिद्ध दरवाजा पुराने नगर का दक्षिण दरवाजा था, और वहाँ से ही वह मार्ग जाता होगा जिसका 'थोड़ा सा उल्लंघन करने पर' अवन्तिसुकुमाल का मृत्युस्थान पाया जाता था।
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