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हुये। भागवतमें स्पष्ट गैतिसे इन ऋषमदेवको स्वयं भगवान कबत्यपनि हिता है । तथा उनको दिगम्बर वेष और जैनधर्मना चलानेवाला जलाया है। इस उल्लेखसे प्रगट है कि मृष्टिके प्रारम्भमें, जो हिन्दू मानते हैं, जब ब्रह्माने त्वयंभृमनु और सत्वरूपाको उत्पन्न किया तो ऋषभदेव तब उनसे पांचवीं पीढ़ीमें हुये और "पहले मतयुगके अन्तमें हुये और २८ सतयुग इस अरसे तक व्यतीत होगये । इस प्रकार ऋषभदेवका अस्तित्व एक अतीव प्रचीनगालमें प्रगट होता है और यह सर्वमान्य है कि भागवतोक्त ऋयभव ही जनों ने प्रथम तीर्थकर है। उनके मातापिताका नाम
और गेष वर्णन भागवनमें भी प्रायः वैसा ही है जैसा जनशास्त्रोंमें है । भागवतके अतिरिक्त 'वराहपुराण' और 'अग्निपुराण में भी ऋषभदेवका उल्लेख विद्यमान है । 'प्रभासपुराण में तो केवल ऋषभदेवका ही नहीं बलिक रखें तीर्थंकर श्री नेमिनाथनीचा उल्लेख भी मौजूद है। इनके अतिरिक्त हिंदू ‘पमपुराण में वेदानुयायी गना बेनके जैन होने का वर्णन मिलता है। जब वह राज्य करहे
-भावन स्कन्ध . ल. ३-३ । २-भागवत मन्व २ अ० ७ ब्यावर ) पृ. ७६ :-जिनेन्द्रमा दर्गा भा १ . १० । ४-हिन्दी विश्वकोप न० : पृ. १४ मार डॉ.न्दविन्धन, कल्यत्री भृमिन इ. ५ वय नाय पिता अपम हमदलित वर्ष महानु नामम। -समो भन्दव्याग्न पनामानोडम्वत् । भामरत र नग्नासमीनबभत् ॥ ७. विम्ले र उप जिन्दवर कर सवनर व मंद सुवगः त्रिः ॥ १९ ॥ मी डिन मियुगतिविमल बने ।
। प्रनार मुनिमगर शत् ॥