Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ नारसाणु पवस्वा का विलय होकर ज्ञानरूपी दीप का प्रकाश होता है । कहा भी है। द्रादपि सदा चिन्त्या अनुपेक्षा महात्मभिः । तद्भावना भवत्येव कर्मणः क्षयकारणम || महात्मा पुरुषों को निरन्तर बारह अनुपेक्षाओं का चिन्तन करना चाहिए क्योंकिये कर्म क्षय में कारण है। अत: हे मानव इन अनुषेक्षाओं के चिन्तन से चैतन्य को उपलब्ध कर । चैतन्यामृत की परमोपलब्धि ही अनुपेक्षा का परम-सार है। इनको जीवन में श्रृंगारित करना ही आचार्य भगवन कुन्दकुन्द देव के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन है । एवं आध्यात्म योगी, संतशिरोमणि प.पू. आचार्य गुरुवर्य श्री विरागसागर जी महाराज जिन्होंने मूल गाथाओं का सहज सुबोध शैली में अनुवाद कर प्रणेता की आध्यात्म लेखनी को जनमानस में आलोकित करने का मार्ग प्रशस्त किया एवं अहर्निश संलग्न है ऐसे धरा के गौरव पुंज, मेरे जीवन प्रदाता, रत्नत्रय दाता महायोगी के श्री चारणविंद में त्रय भक्ति पूर्वक नमन-| मुनि विशल्य सागर वर्णी भवन मोराजी सागर (म.प्र.) पावस योग - 2000 वीर निर्वाण सं. 2526

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108