Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 39
________________ सारसा पेपरवा ३८ ५. संसार अनुप्रेक्षा परिभ्रमण का कारण पंच विहे संसारे जाइ जरा-मरण-रोगभय पउरे । जिणमग्गमपेच्छंतो जीवोपरिभमदि चिरकालं ॥२४॥ अन्वयार्थ: जीवो जिणमगमपेच्छतो पउरे जाइ जरा मरण रोग भय - यह जीव - जिनमार्ग अर्थात् मोक्षमार्ग को न जानता हुआ - प्रचुर जन्म, बुढ़ापा, मरण • रोग भय से युक्त - पांच प्रकार के संसार में - दीर्घकाल तक - परिभ्रमण करता है ॥२४|| पंच विहे संसारे चिरकालं परिभमदि भावार्थ- यह संसारी जीच जिनमार्ग/जिनेन्द्र भगवान के द्वारा बताया हुआ मोक्ष मार्ग को न जानता हुआ अथवा उसमें श्रद्धान न करता हुआ प्रचुर जन्म, बुढ़ापा मरण, रोग, भन्म में युक्त, ट्रन्य, क्षेत्र काल, भाव और भव रूप, पांच प्रकार के संसार में दीर्घ काल तक परिभ्रमण करता है। विराग-सुमन • जागो जागरण तुम्हारी क्षमता है, तुम्हारी संभावना है. जैसे बीज में वृक्ष छिपा है ऐभे ही तुम में परमात्मा छिपा है। (दर नहीं है मंजिल कृति से

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