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सारसा पेपरवा
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५. संसार अनुप्रेक्षा
परिभ्रमण का कारण
पंच विहे संसारे जाइ जरा-मरण-रोगभय पउरे । जिणमग्गमपेच्छंतो जीवोपरिभमदि चिरकालं ॥२४॥
अन्वयार्थ:
जीवो जिणमगमपेच्छतो पउरे जाइ जरा मरण
रोग भय
- यह जीव - जिनमार्ग अर्थात् मोक्षमार्ग को न जानता हुआ - प्रचुर जन्म, बुढ़ापा, मरण • रोग भय से युक्त - पांच प्रकार के संसार में - दीर्घकाल तक - परिभ्रमण करता है ॥२४||
पंच विहे संसारे चिरकालं परिभमदि
भावार्थ- यह संसारी जीच जिनमार्ग/जिनेन्द्र भगवान के द्वारा बताया हुआ मोक्ष मार्ग को न जानता हुआ अथवा उसमें श्रद्धान न करता हुआ प्रचुर जन्म, बुढ़ापा मरण, रोग, भन्म में युक्त, ट्रन्य, क्षेत्र काल, भाव और भव रूप, पांच प्रकार के संसार में दीर्घ काल तक परिभ्रमण करता है।
विराग-सुमन • जागो जागरण तुम्हारी क्षमता है, तुम्हारी संभावना है. जैसे बीज में वृक्ष छिपा है ऐभे ही तुम में परमात्मा छिपा है।
(दर नहीं है मंजिल कृति से