Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 68
________________ वारसाणु क्वा अशुभ भाव ही अशुभ मन है किण्हादि तिण्णिलेस्सा करणजसोक्खेसु गिद्ध परिणामो । ईसा विसादभावो असुहमणं तिय जिणावेंति ।।५१|| अन्वयार्थ: किण्हादि तिणिलेस्सा करणजय सोक्सु गिद्धि परिणामो ईसा य विसाद भावो असुहमणं त्ति जिणावेति अन्वयार्थ: - 4 - रागो दोसो मोहो हास्सादि णोकसाय थूलो मुहुमो असुहमणो वेति - - भावार्थ- कृष्णा, नील, कापोत ये तीन अशुभ लेश्यएं, इंद्रियों से उत्पन्न सुखों में आसक्ति रूप परिणाम, ईर्षा और विषाद रूप भाव अशुभ मन है। ऐसा जिनेन्द्र भगवान ने कहा है। कषाय नोकषाय रूप परिणाम अशुभ मन है रागो दोसरे मोहो, हास्सादि णोकसायपरिणामो । थूलो वा सुमो वा असुहमणो तिये जिणा वेति ॥ ५शा 3 - कृष्णा आदि तीन अशुभ लेश्यायें इंद्रियों से उत्पन्न सुखों में गिद्धि / आसक्ति रूप परिणाम ईर्षा और विषाद रूप भाव अशुभ मन है ऐसा जिनेंद्र भगवान कहते हैं ॥५१॥ - ६७ राग द्वेष मोह, हास्य आदि भो कषाय स्थूल सूक्ष्म अशुभ मन कहना भावार्थ- सभी प्रकार के स्थूल व सूक्ष्म राग द्वेष, मोह, हास्य आदि नो कषाय रूप परिणाम को जिनेन्द्र भगवान ने अशुभ मन कहा हैं।

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