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वारसाण पतरवा
गायक-nirLIावाविसमजायज
उत्तम संयम धर्म
वद समिदि पालणार दंडच्चाएण इंदियजयेण। परिणाम माणस्स पुणो संजम धम्मो हवे णियमा ।।७६३॥
अन्वयार्थ:
बद समिदि पालणाए दंडच्चाएण पुणो
इंदिय जयेण परिणाम माणस्स णियमा संजय धम्मो हवे
- व्रत समिति के पालन से - मन, वचन काय रूप दण्ड के त्याग से ।
और - इंद्रिय विजय रूप - परिणाम से युक्त (मुनि) के - नियम से - संयम धर्म होता है ||७६||
भावार्थ- जो मुनि अहिंसा आदि पांच महाव्रत तथा ईर्या समिति आदि पांच समितियों का पालन करते हैं। अशुभ मन, वचन, काय, रूप दण्डों का त्याग तथा स्पर्शन आदि इंद्रियों के विषयों को जीतने रूप विशुद्ध परिणामों से युक्त हैं। उनके ही उत्तम संयम धर्म होता है।
•जन्मः फलं सारं, यदेतज्ज्ञान सेवनम् । अनिगूहित: वीर्यस्य, संयमस्य च धारणम् ।।
(सा. समु.) अर्थ- इस मानव जन्म का यही सार है कि अपनी शक्ति को न छिपाकर
संयम को धारण करना और आत्मज्ञान की भावना करना।