Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 104
________________ ાિરા પાર 15 १०३ अनुप्रेक्षाएँ ही प्रतिक्रमण आदि है उपसंहार बारस अणुपेक्खाओ पच्चक्खाणं तहेव पडिकमणं । आलोयणं समाहिं तम्हा भावेज्ज अणुवेक्खं ॥८७|| अन्वयार्थ: बारस अणुपेक्खाओ पच्चक्खाणं पडिकमणं आलोरणं तहेव समाहिं तम्हा अणुवेक्वं - ये बारह अनुप्रेक्षायें ही - प्रत्याख्यान हैं, प्रतिक्रमण हैं। - आलोचना है - तथा वे इसी प्रकार से - समाधि हैं - इसलिये (इन) - अनुप्रक्षाओं का हमेशा चिंतन करना चाहिए ।।८।। भावार्थ- ये बारह अनुप्रेक्षाएं ही वास्तव में प्रत्याख्यान प्रतिक्रमण, आलोचना तथा समाधि है । अत: इनका हमेशा चिंतन करना चाहिए। • णाणाजीवा णाणाकम्मं णाणाविहं हवे लदी। तम्हा वयणविवाद सगपरसमएहि वज्जिज्जो ।। (नि. सा, १५६) अर्थ- अनेक प्रकार के जीव हैं. कर्म भी अनेक प्रकार के हैं और लब्धि के भी नाना प्रकार हैं। इसलिए स्वप्समन और परसमय के द्वारा वचनों का विवाद छोड़ देना चाहिए।

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