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[धारसाणु वैवखा
ये क्रियाऐं अहोरात्र करें
रत्तिदिवं पडिकमणं पञ्चक्खाणं सम्माहि सामइयं । आलोयणं पकुव्वदि विजदिसती
अन्वयार्थ:
अप्पणो जदि सत्ती विज्जदि
रति दिवं
पडिकमणं पञ्चक्खाणं
समाहि सामइयं
आलोयणं पकुव्वदि
-
यदि जितनी अपनी शक्ति है उसके
अनुसार
दिन रात
प्रतिक्रमण,
प्रत्याख्यान
-
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समाधि, सामायिक
आलोचना को अच्छी तरह से करना चाहिए ||८८॥
भावार्थ - अपनी जितनी शक्ति है उसके अनुसार अहोरात्र, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, समाधि, सामायिक, आलोचना को अच्छी तरह से करना चाहिए।
• ईसा भावेण पुणो, केई जिंदंति सुंदर मग्गं । तेसिं वयणं सोच्चाऽभत्तिं मा कुणइ जिणमग्गो ॥ ( नियमसार १८६ )
अर्थ- कोई लोग मिथ्यात्व के उदय से कलुषित चित्त हुये ईष्याभाव से सुन्दर, अनेकांत स्वरूप, सार्वभौम जिन शासन की निंदा करते हैं, उस निर्दोष शासन में भी दोष प्रगट करते हैं, वे अवर्णवाद करने वाले लोग दर्शनमोहनीय
( मिश्यात्व ) की सत्तर कोड़ा कोड़ी सागर प्रमाण स्थिति का बंध कर लेते हैं । उन एकांतवादी निंदक जनों के वचन सुनकर हे भव्योत्तमा आप लोग स्वर्ग-मोक्ष को देने वाले जिनमार्ग में अभक्ति अथवा अविश्वास मत करों ।