________________
वारसाशुक्रवा
१०५
जो भी मोक्ष गए बारह भावना के चिंतवन से
गोधण्या जे पुलिस अगामालेमा बार आगुवन : परिभाविऊण सम्मं पणमामि पुणो पुणो तेसिं ।।८।।
अन्वयार्थ:
अणाइकालेण जे पुरिसा मोक्न गया बारअणुपेक्खं परिभाविऊण
- अनादिकाल से आज तक - जितने भी पुरुष - मोक्ष गये हैं वे सब - इन बारह अनुप्रेक्षाओं को • अच्छी तरह से भा करके ही मोक्ष गये हैं
इसलिये मैं (कुंद कुंदाचार्य) - उन सभी को - विधि पूर्वक - बारम्बार नमस्कार करता हूँ ॥८९||
तेसिं सार्म पुणो पुणो पणमामि
भावार्थ- अनादिकाल से आज तक जितने भी पुरुष मोक्ष गये हैं वे सब इन बारह अनुप्रेक्षाओं को अच्छी तरह से भा करके ही गये हैं। इसलिये में (कुंद कुदाचार्य) उन सभी । (सिद्धों) को विधि पूर्वक बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
• जो रयणत्तय-जुत्तो खमादि-भावेहिं परिणदो णिच्च । .सव्वत्थ वि मज्झत्थो सो साहू भण्णदे धम्मो।।
(का. अ. ३९२) | अर्थ- जो रत्नत्रय से युक्त होता है, सदा उत्तमक्षमा आदि भावों से सहित होता है
और सब में मध्यस्थ रहता है वह साधु है और वही धर्म है।