Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 108
________________ [पारा पेपरवा अंतिम निवेदन भावना भाने का फल इदि णिच्छयववहारं जं भणियं कुंद कुंदमुणिणाहे / जो भावइ सुद्धमणो सो पावइ परमणियाणं // 11 // अन्वयार्थ:इदि - इस प्रकार से मुणिणाहे कुंद कुंद - मुनियों के नाथ कुंद कुद आचार्य श्री ने जं णिच्छयववहारं - निश्चय और व्यवहार को भणिय - कहा है उसे जो सुद्धमणो भावइ - जो शुद्ध मन से भाता है सो परम णिव्याणं * वह परम निर्वाण (मोक्ष) को খুনঃ - प्राप्त करता है ||11 // भावार्थ- इस प्रकार से मुनियों के नाथ/ स्वामी / नायक कुंद कुंद आचार्य श्री ने निश्चय और व्यवहार नय से बारह अनुप्रेक्षाओं को कहा है। उसे जो शुद्ध मन से भाता है, चिंतन करता है वह परम निर्वाण को प्राप्त होता है, करता है। -इति• दीज्यन्नाभिरयं ज्ञानी भावनाभिर्नि रन्तरम् / इहैवाप्नोत्यनातक सुखमत्यक्षमक्षयम् / / (ज्ञानार्णव) अर्थ- इन बारह भावनाओं से निरंतर रमते हुए ज्ञानीजन इसी लोक में रोगादिक की बाधारहित अतीन्द्रिय अविनाशी सुख को पाते हैं अर्थात केवलज्ञानानन्द को पाते है।

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