Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 103
________________ बारसास्वा निश्चय में हेयोपांच का विकल्प नहीं एवं जायदि णाणं हेयमुपादेय णिच्छये णत्थि। चिंतिज्जइ मुणि बोहिं संसार विरमणढे य ।।८।। अन्वयार्थ: एवं णिच्छये हेयमुपादेय जायदि णाणं णस्थि संसार विरमणद्वेय मुणि बोहि चिंतिज्ज - इस प्रकार निश्चय नय से - हेय और उपादेय रूप संकल्प और | विकल्पों को - उत्पन्न करने वाला - क्षायोपशमिक ज्ञान - (आत्मा स्वरूप) नहीं है इसलिये - संसार से विरक्त - मुनि को - (केवल ज्ञान रूप) बोधि का चिंतन करना चाहिए ।।८।। भावार्थ- इस तरह से निश्चय नय से हेय और उपादेय रूप संकल्प विकल्पों को उत्पन्न करने वाला क्षायोपशमिक ज्ञान निजी स्वभाव नहीं है इसलिए संसार से विरक्त मुनि को निज स्वभाव रूप क्षायिक केवलज्ञान रूपी बोधि का चिंतन करना चाहिए। .धर्म: कामदुधा धेनुर्धर्मश्चिन्तामणिमहान | धर्म: कल्पतरु स्थेयान् धर्मो हि निधिरक्षयः ॥२/३४|| (आदिपुराण) अर्थ- मनचाही वस्तुओं को देने के लिये धर्म ही कामधेनू है, धर्म ही महान चिन्तामीण है, धर्म ही स्थिर रहने वाला कल्पवृक्ष है और धर्म ही अविनाशी निधि है।

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