Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 101
________________ बारसाणु क्या स्वद्रव्य उपादेय है ऐसा निश्चय, सम्यग्ज्ञान है कम्मुदयंज पज्जाया हेयं खाओवसमियणाणं तु । सगदव्वमुपादेयं णिच्छयमिदि होदि सण्णाणं ॥ १८४॥ अन्वयार्थ: पिच्छय कम्मुदयज पज्जाया तु खाओaafमय णाणं हेय सणाणं सगद इदि जवादेयं होदि निश्चय नय से कर्म के उदय से होने वाली - राग द्वेष मोह रूप पर्याय और क्षायोपशमिक ज्ञान ये सभी छोड़ने योग्य हैं और - - १०० सम्यज्ञान स्वभाव है एवं द्रव्य है इसलिये वही उपादेय होता है ॥ ८४ ॥ भावार्थ- निश्चय नय से चारित्र मोह कर्म के उदय से होने वाली राग द्वेष मोह रूप पर्याय तथा ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होने वाले ज्ञान हेय हैं। छोड़ने योग्य हैं। किंतु एक मात्र क्षायिक केवलज्ञान सच्चा ज्ञान है। वह ही हमारा अपना निज स्वभाव रूप ज्ञान है । अत: उपादेय है ग्रहण करने योग्य है । • नरकान्ध महाकूपे पततां प्राणिनां स्वयम् । धर्म एव स्वसामर्थ्याद्दते हस्तावलम्बनम् ||१३|| ( ज्ञानार्णव) अर्थ - नरकरूपी महा अंधकूप में स्वयं गिरते हुये जीवों को धर्म ही अपने सामर्थ्य से हस्तावलम्बन (हाथ का सहारा) देकर बचाता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108