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लारसाण पेपरवा
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निश्चम को द्विविध धारित अरमा
णिच्छयणयेण जीवो सागारणगारधम्मदो भिण्णो। मज्झत्थ भावणाए सुप्पं चिंतए णिच्चं ॥८२॥
अन्वयार्थ:
णिच्छय णयेण जीवो
सागारणगार धम्मदो
भिण्णो मज्झत्थ भावणाए
- निश्चय नय से यह जीव (क्रिया काण्ड
रूप) - सागार (श्रावक) और अनगार (मुनि)
धर्म से • रहित है इसलिए इसमें - माध्यस्थ भावना के द्वारा अर्थात् माध्यस्थ
भाव रखते हुए - चिंतन करना चाहिए - चिंतन करना चाहिए ॥८२||
णिच्चं सुद्धप्पं
चिंतए
भावार्थ- शुद्ध निश्चय नय से यह जीव सागार अर्थात श्रावक धर्म और अनगार अर्थात् मुनि धर्म के संकल्प विकल्पों से भिन्न हैं अतः इसमें माध्यस्थ भाव रखते हुए शुद्धात्मा का चिंतन करना चाहिए।
• जं अण्णी कामं, खवेदि भवसयसहस्स कोडिहिं । तंणाणी तिहिं गुत्तो खवेदि उस्सासमेत्तेण ॥
(प्रवचन सार) अर्थ- अज्ञानी जितने कर्म को लाखों करोड़ो वर्षों में खपाते है, तीन गुप्ति से युक्त
ज्ञानी मुनि उतने कर्म को उच्छ्वासमात्र में ही क्षय कर देते है।