Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 102
________________ ( ভায় যুবহd १०१ केवल आत्मा ही स्वद्रव्य है मुलुत्तयपथडीओ मिच्छत्तादी असंखलोग पिरणामा। परदष्यं सगदव्वं अप्पा इदि णिच्छयणएण ||८५॥ अन्वयार्थ: णिच्छयणएण मिच्छत्तादी असंखलोग . परिणामा मुलुप्तय पयडीओ पर दव्वं अप्पा सद दव्वं - निश्चय नय से - मिथ्यात्वादि असंख्यात लोक प्रमाण - परिणाम - मूल और उत्तर प्रकृतियाँ - पर द्रव्य है तथा - अपनी आत्म स्वद्रव्य है। - ऐसा जानना चाहिए ॥८५॥ इदि भावार्थ- शुद्ध निश्चय नय से मिथ्यात्वादि असंख्यात् लोक प्रमाण परिणाम कर्मों की आठ मूल और एक सौ अड़तालीस उत्तर प्रकृति रूप में विभक्त है । ये सभी परिणाम व पौद्गलिक कर्म प्रकृतियां पर द्रव्य हैं और अपनी आत्मा स्व द्रव्य है ऐसा जानना चाहिए। • रयणत्तय-संजुत्तो जीवो वि हवेइ उत्तम तित्थं। संसारं तरइ जदो रयणत्तत-दित्य-णावाए ।।१९।। अर्थ- रत्नात्रय से सहित यही जीव उत्तम तीर्थ है क्योंकि वह रत्नात्रय रूपी दिव्य नावसे संसार को पार करता है। (कातिकेयानुप्रेक्षा

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