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( ভায় যুবহd
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केवल आत्मा ही स्वद्रव्य है
मुलुत्तयपथडीओ मिच्छत्तादी असंखलोग पिरणामा। परदष्यं सगदव्वं अप्पा इदि णिच्छयणएण ||८५॥
अन्वयार्थ:
णिच्छयणएण मिच्छत्तादी असंखलोग . परिणामा मुलुप्तय पयडीओ पर दव्वं अप्पा सद दव्वं
- निश्चय नय से - मिथ्यात्वादि असंख्यात लोक प्रमाण - परिणाम - मूल और उत्तर प्रकृतियाँ - पर द्रव्य है तथा - अपनी आत्म स्वद्रव्य है। - ऐसा जानना चाहिए ॥८५॥
इदि
भावार्थ- शुद्ध निश्चय नय से मिथ्यात्वादि असंख्यात् लोक प्रमाण परिणाम कर्मों की आठ मूल और एक सौ अड़तालीस उत्तर प्रकृति रूप में विभक्त है । ये सभी परिणाम व पौद्गलिक कर्म प्रकृतियां पर द्रव्य हैं और अपनी आत्मा स्व द्रव्य है ऐसा जानना चाहिए।
• रयणत्तय-संजुत्तो जीवो वि हवेइ उत्तम तित्थं।
संसारं तरइ जदो रयणत्तत-दित्य-णावाए ।।१९।। अर्थ- रत्नात्रय से सहित यही जीव उत्तम तीर्थ है क्योंकि वह रत्नात्रय रूपी दिव्य नावसे संसार को पार करता है।
(कातिकेयानुप्रेक्षा