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सारसाणु पक्रया।
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१२ बोधि दुर्लभ अनुप्रेक्षा
बोधि की प्रप्ति अत्यंत दुर्लभ
उप्पज्जदि सपणाणं जेण उवाएण तस्सुवायस्स । चिंता हवेइ बोहो अच्चंतं दुल्लंह होदि ।।८३॥ .
अन्वयार्थ:
जेण उवाएण सण्णाणं उप्पज्जदि तरम गायब चिंता हवेइ बोहो अच्चंतं दुल्लहं होदि
- जिस उपाय से - सम्यग्ज्ञान उत्पन्न होता है - ग़म उपाय की - चिंता करना बोधि है - जो अत्यन्त दुर्लभ - होता है ।।८।।
भावार्थ- जिस उपाय से सम्यग्ज्ञान उत्पन्न होता है उस उपाय की चिंता करना बोधि है जो अत्यन्त दुर्लभ है।
• सुप्रापं न पुनः पुंसां बोधिरत्नं भवार्णवे। हस्ताभ्रष्ट यथा रत्नं महामूल्यं महार्णवे ॥१२।।
(ज्ञानार्णवः) अर्थ- यह जो बोधि अर्थात् सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र स्वरूप रत्नात्रय है, संसार रूपी || समुद में प्राप्त होना सुगम नहीं है, किन्तु अत्यंत दुर्लभ है इसको पाकर भी जो खो । बैठते हैं, उनको हाथ में रक्खे हुये रत्न को बड़े समुद्र में डाल देने पर जैसे फिर
मिलना कठिन है, उसी प्रकार सम्यग् रत्नत्रय का पाना दुर्लभ है।