Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 91
________________ वारसाणु देवखा अन्वयार्थ: परसंतावयकारण - वयणं मोत्तूण सपरहिदवयणं । जो वददि भिक्खु तुरियो तस्स दु धम्मो हवे सच्च ॥७४॥ जो भिक्खु पर संतावयकारण aaj मो सपर हिंद वयणं वददि उत्तम सत्य धर्म तस्स दु सच्चं धम्मं हवे - - - - जो भिक्षु/मुनि दूसरों को दुख के कारण भूत वचनों को छोड़कर स्व- पर हितकारी वचनों को कहते हैं उन्हें ही सत्य धर्म होता है || ७४ ॥ १० भावार्थ- जो मुनि, दूसरों को संताप देने वाले वचनों का त्याग कर अपने व दूसरों के प्रति हितकारी वचन बोलते हैं वे सभी सत्य वचन ही उनके सत्य धर्म है । धर्मनाशे क्रियाधंव से सुसिद्धान्तार्थ विप्लवे । अप्रष्टैरपि वक्तव्यं तत्स्वरूप प्रकाशने ॥ ( ज्ञानार्णव ९ / १५) अर्थ- जहाँ धर्म का नाश हो, क्रिया बिगड़ती हो तथा समीचीन सिद्धान्त का लोप होता हो उस जगह समी चीन धर्मक्रिया और सिद्धान्त के प्रकाशनार्थ बिना पूछे भी विद्वानों को बोलना चाहिए क्योंकि यह सत्पुरूषों का कार्य है ।

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