Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 90
________________ वारसाधु पेसरवा मोत्तूण कुडिल भावं णिम्मल हिदएण चरदि जो समणो । अज्जव धम्मो तइयो तस्स दु संभवदि नियमेण ॥ ७३ ॥ अन्वयार्थः जो समणो उत्तम आर्जव धर्म कुडिल भावं मोतुण णिम्माल हिदाएण चरदि तस्स द णियमेण तइयो अज्जव धम्मो ਸੰਪਰਦੇ - - जो श्रमण / मुनि कुटिल भावों को छोड़कर निमल हृदय से आचरण करता है उसी के अंदर ही नियम से तीसरा आर्जव धर्म है|७|| ८९ भावार्थ- जो मुनिराज मन, वचन, काय से छल कपट रूप कुटिल भावों का त्याग करके निर्मल पवित्र हृदय से जो सहज एवं सरल आचरण करते हैं उनके उत्तम धर्म होता है। चकवृत्तिं समालम्ब्य वञ्चकैर्वञ्चितं जगत् । कौटिल्य कुशलैः पापैः प्रसन्नं कश्मलाशयैः ॥ ( ज्ञानार्णव) अर्थ- कुटिलता में चतुर मलिनचित्त पापी ढंग बगले के ध्यान कीसी वृत्ति (क्रिया) का आलम्बन कर इस जगत को ठगते रहते है • जन्म भूमि रविद्यानामकीर्ते वसमन्दिरम | पापपमहागर्तो निकृतिः कीर्तिता बुधैः ।। ॥ ज्ञानार्णव ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108