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નિરસાબ તટના
उत्तम मार्दव धर्म
कुल-रुव-जाति-बुद्धिसु तव-सुद-सीलेसु गारवं किंचि। जो णवि कुदि सम्म नाम हले हम ॥७२।।
अन्वयार्थ:
जो समणो कुल रुव जादि बुद्धिसु तव सुद सीलेसु किवि गारवं णवि कुव्वदि तस्स महव धर्म हवे
- जो श्रमण अर्थात् मुनि - कुल, रूप जाति - बुद्धि - तप श्रुत (शास्त्र ज्ञान) और - विभिन्न प्रकार के शीलों (स्वभावों में) • किंचित् भी अभिमान - नहीं करता है। - उसका (वह) मार्दव धर्म है ||७२।।
भावार्थ- मुनिराज के जो -(१) कुल (पितृपक्ष) (२) रूप (३) जाति (मातृपक्ष) (४) बुद्धि (अनेक प्रकार की कला रूप ऐश्वर्य) (५) तप (६) ज्ञान (७) शील (पूजा सम्मान) और (८) बल (शक्ति) पर किंचित भी अभिमान नहीं करने रूप उत्तम मार्दव । धर्म होता है।
• उत्तम-णाण-पहाणो उत्तम-तबयरण-करण-सीलो वि। अप्पाणं जो हीलदि मद्दव-रयणं भवे तस्स ।।
(का.अ.३९५) अर्थ- उत्कृष्ट ज्ञानी और उत्कृष्ट तपस्वी होते हुए भी जो ।
मद नहीं करता वह मार्दव रूपी रत्न का धारी है ।।