Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 88
________________ बारसामु देवखा अन्वयार्थ: उत्तम क्षमा धर्म कोहुप्पत्तिस्स पुणो बहिरंग जदि हवेदि सक्खादं । ण कुणदि किं वि कोहो तस्स खमा होदि धम्मोत्ति ॥ ७१ ॥ जदि कोहुप्पत्तिस्स सक्खादं बहिरंग हवेदि पुणो किंविकोहो ण कुणदि तस्स खमा धम्मोति होदि - - यदि क्रोध की उत्पत्ति का साक्षात् बाह्य कारण उपस्थित हो जाये तो भी जो किंचित भी क्रोध नहीं करता है उसके (उत्तम) क्षमा धर्म होता है || ७१ ॥ भावार्थ- मुनि के क्रोध की उत्पत्ति के साक्षात् कारण उपस्थित होने पर भी क्रोध रूप भाव नहीं होना समता होना उत्तम क्षमा धर्म है। • उत्तमे तु क्षणं कोपो मध्यमे घटिकाद्वयम् । अधमे स्यादहोरात्रं चाण्डालो मरणान्तकः ॥ ( स. श्लो.सं.) ८७ • नास्ति काम समो व्याधि र्नस्ति मोह समोरिपुः । नास्ति क्रोध समो वहिन र्नस्ति ज्ञान समं सुखं || (सारसमुच्चय) • क्षमः श्रेयः श्रमः पूजा, क्षमाः शय्याः श्रमः सुख: । श्रमः दानं क्षमा पवित्रं च, क्षमा मांगल्यं उत्तमम् ॥

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