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भारसाकरवा
मुनियों के दशधर्म
उत्तम खम-मद्दव-ज्जव-सच्च-सउच्चं च संजमंचेव । तव-चाग-मकिंचण्णं बम्हा इदि दसविहं होदि ॥७॥
अन्वयार्थ:
उत्तम खम मद्दव ज्जव सच्च-सउच्च च संजमं एव तव चाग अकिंचण्णं च बम्हा इदि दस विहं होदि
- उत्तम, क्षमा, मार्दव, आर्जव • सत्य, शौच और संयम - इसी प्रकर तप त्याग - आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य - इस प्रकार धर्म के दस भेद होते हैं।।७०।।
अर्थ
(१) उत्तम क्षमा
(२) उत्तम मार्दव (३) उत्तम आर्जव (४) उत्तम सत्य (५) उत्तम शौच (६) उत्तम संयम (७) उत्तम तप (८) उत्तम त्याग (९) उत्तम आकिंचन्य (१०) उत्तम ब्रह्मचर्य ये इस प्रकार धर्म हैं ।।७०|| तत्त्वार्थ सूत्र में इसे निम्न प्रकार से भी कहा गया है। उत्तम क्षमा मार्दवार्जव शौच सत्य संयम तपस्त्यागाकिण्वन्य ब्रह्मचर्याणि धर्माः । ९/६
अर्थात्- (५) उन्नम क्षमा (२) उत्तम मार्दव (३) उत्तम आर्जव (४) उत्तम शौच (५) उत्तम सत्य (६) उत्तम संयम (७) उत्तम तप (८) उत्तम त्याग (९) उत्तम आकिंचन्य (५.०) उत्तम ब्रह्माचर्य ___ो इस प्रकार के धर्म है।