Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 85
________________ ८४ ११.धर्म अनुप्रेक्षा श्रावक और मुनि धर्म के भेद एयारस दस भेदं धर्म सम्मत्त पुव्वयं भणियं । सागार-णागाराणां उत्तम सुह संपजुत्तेहि ॥६८।। अन्वयार्थ: सम्मत्त पुष्वयं एयारस - सम्यक्त्व पूर्वक ग्यारह प्रतिमा रूप सागार • St. और दस भेद - दस भेद से युक्त णगाराणां - गृह रहित अनगारों का धम्म - धर्म है ऐसा उत्तम सुह संपजुत्तेहि - उत्तम सुख से सम्पन्न भणियं - जिनेन्द्र भगवान ने कहा है ||६८|| अर्थ- जिनेन्द्र भगवान ने चरणानुयोग की अपेक्षा धर्म के मुख्य दो भेद कहे हैं। पहला श्रावक धर्म इसके दर्शन प्रतिमा आदि ग्यारह भेद हैं। दूसरा मुनि धर्म इसके उत्तम क्षमादि दस भेद हैं। • इस दुलह मणुयत्तं लहिऊणं जे स्मंत्ति विसएसु । ते लहिय दिव्व-रयणं भूइ णिमित्तं पजालति ।। (का. अनु. ३००) अर्थ- दर्लभ मनुश्य - पर्याय को प्राप्त करके जो पापों इन्द्रियों के विषयों में रमते हैं वे ___ मूढ दिव्य रत्न को पाकर उसे भस्म के लिए जलाकर राख कर डालते हैं।

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