Book Title: Barsanupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 84
________________ : वारसाणु वेवस्था अन्वयार्थ: - निर्जरा के सविपाक अविपाक भेद सा पुण दुविहा पोया सकाल पक्का तवेण कयमाणा । चदुगदियाणं पदमा व जुत्ताणं हवे विदिया ॥६७॥ यह गाथा मुलाचार में इस प्रकार है रुद्धासवस्स एवं नवसा जुत्तस्स विज्जरा होदि । दुविहाय विभणि देशादी सम्बद केव ॥७४६क्षा सा दुविहा सकाल पक्कापुण तवेण (पत्ता) कयमाणा पढमा चाहुगन्द्रियाणं - - - - ८३ वह निर्जरा दो प्रकार की है स्वकाल प्राप्त और तप के द्वारा प्राप्त पहली निर्जरा चारों गतियों के जीवों के होती है विदिया वय जुत्ताणं भावार्थ - निर्जरा के मुख्य दो भेद हैं । 1. सविपाक निर्जरा 2. अविपाक निर्जरा अपने-अपने समय में आम्रव पूर्वक कर्मों का निर्जीण होने को सविपाक निर्जरा कहते हैं। जो कि चारों गतियों के जीवों के निरंतर होती रहती है। तथा दूसरी निर्जरा समय के पूर्व तप आदि के द्वारा संबर पूर्वक होती है। उसे अविपाक निर्जरा कहते हैं। यह व्रतो जीवों के ही होती है । और दूसरी निर्जरा । व्रतों से युक्त जीवों के होती है ॥६७॥ गाण आण सिद्धि झाणादो सव्व क्रम्म णिज्जगणं । शिज्जण फलं मोक्खं गाणलभा तदो कुज्जा | (र. सा. १५०)

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